Sat, Dec 27, 2025

होलिका दहन : बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं

Written by:Shruty Kushwaha
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होलिका दहन सिर्फ एक पौराणिक कथा या परंपरा नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन की एक गहरी सीख भी देता है..अहंकार की आग में स्वयं जलने का सत्य। हिरण्यकश्यप ने सोचा था कि वो अमर है, कि उसका अहंकार उसे अजेय बना देगा। लेकिन वो यह भूल गया कि जो खुद को सबसे बड़ा मानता है, वह स्वयं अपनी विनाशगाथा लिखता है। होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था, लेकिन उसने इसे अधर्म की राह पर चलने के लिए इस्तेमाल किया। परिणामस्वरूप, जिस अग्नि में उसने प्रह्लाद को जलाने की सोची थी उसी अग्नि ने उसे भस्म कर दिया। यह घटना केवल अच्छाई की जीत भर नहीं, बल्कि इस बात का प्रतीक भी है कि जो शक्ति हमें मिली है, अगर उसे गलत दिशा में प्रयोग करेंगे तो वह हमारा ही अंत कर देगी।
होलिका दहन : बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं

Holika Dahan : आज होलिका दहन है। सीएम डॉ. मोहन यादव ने इस अवसर पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी है। उन्होंने आह्वान किया कि इस पर्व पर हम सभी नकारात्मकता को तजकर शुभता का वरदान मांगें। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है जो हमें सिखाता है कि सत्य, धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने वालों की विजय होती है और अधर्म अहंकार का नाश निश्चित है।

होलिका दहन न सिर्फ धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका आध्यात्मिक महत्व भी है। यह त्योहार आत्मशुद्धि, बुरी आदतों को त्यागने और भक्ति की शक्ति को स्थापित करता है। होलिका दहन की परंपरा भक्त प्रह्लाद की कहानी से जुड़ी है जिससे ये संदेश मिलता है कि अधर्म और अहंकार का अंत निश्चित है, जबकि धर्म और भक्ति की सदा विजय होती है। होलिका दहन का अर्थ सिर्फ बाहरी रूप से आग जलाना नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर की नकारात्मकता, अहंकार, द्वेष, लालच और ईर्ष्या को जलाने का प्रतीक भी है।

मुख्यमंत्री ने दी होलिका दहन की शुभकामनाएं 

होलिका दहन पर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने प्रदेशवासियों को शुभकामाएं देते हुए एक्स पर लिखा है कि ‘असत्य, अधर्म एवं अत्याचार पर भक्ति की जीत के प्रतीक पर्व होलिका दहन की आप सभी को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं। आइए, इस पवित्र अग्नि में सभी नकारात्मतक तत्वों को समर्पित कर जीवन में मंगल और शुभता का वरदान मांगें। देश और समाज के प्रति अपने अमूल्य योगदान की सिद्धि का संकल्प लें।’

भक्त प्रह्लाद और होलिका दहन की कथा

होलिका दहन की कथा भक्त प्रह्लाद, उनके पिता हिरण्यकश्यप और उनकी बुआ होलिका से जुड़ी है। धार्मिक मान्यतानुसार, हिरण्यकश्यप एक अहंकारी असुर राजा था, जिसने स्वयं को भगवान मान लिया था और चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और अपने पिता की इच्छाओं के विपरीत, श्री विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति से विमुख करने के अनेक प्रयास किए, लेकिन सभी असफल रहे। अंततः, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी जिसे वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। होलिका ने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का निर्णय लिया, ताकि प्रह्लाद भस्म हो जाए। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गई। यह घटना बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक बनी और तभी से होलिका दहन की परंपरा आरंभ हुई।