पुरी, ओडिशा की गलियों में आज से फिर भक्ति और संस्कृति की अनोखी छटा बिखर रही है। 27 जून शुक्रवार से शुरू हुई जगन्नाथ रथ यात्रा 8 जुलाई 2025 तक चलेगी। रथ यात्रा की शुरुआत आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है, जिसे बेहद शुभ माना जाता है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ नंदीघोष रथ पर, बलभद्र तालध्वज पर और सुभद्रा देवी दर्पदलन रथ पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की यात्रा पर निकलते हैं। लाखों श्रद्धालु इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा बनने पुरी पहुंचते हैं और रथ खींचकर पुण्य कमाने की भावना से इस महापर्व को जीवंत बनाते हैं।
दरअसल इस साल रथ यात्रा 12 दिनों तक चलेगी, जिसकी शुरुआत 27 जून को हो चुकी है और समापन 8 जुलाई को नीलाद्रि विजय के साथ होगा। इस दौरान कई प्रमुख रस्में और अनुष्ठान पूरे भव्यता के साथ निभाए जाएंगे। 1 जुलाई को हेरा पंचमी, 5 जुलाई को बहुदा यात्रा और 6 जुलाई को सुना बेशा जैसी विशेष रस्में होंगी।
सड़कों पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है
बता दें कि इन सभी आयोजनों में हर दिन पुरी की सड़कों पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। पुरी के राजा द्वारा ‘छेरा पन्हारा’ की रस्म भी निभाई जाती है, जिसमें वे रथ का चबूतरा सोने की झाड़ू से साफ करते हैं। यह रिवाज बताता है कि भगवान के सामने सभी समान हैं। हर दिन के साथ रथ यात्रा की आध्यात्मिक ऊर्जा और रंग बढ़ते हैं। खासकर सुना बेशा वाले दिन, जब भगवान सोने के आभूषणों से सजाए जाते हैं, वो दृश्य देखने लायक होता है। इसके अलावा ‘अधरा पना’ नामक विशेष पेय भगवानों को अर्पित किया जाता है, जो भक्तों को प्रसाद के रूप में भी दिया जाता है।
सामाजिक महत्व से भी भरपूर है Jagannath Rath Yatra
वहीं जगन्नाथ रथ यात्रा को लेकर मान्यता है कि इसमें शामिल होने वाला व्यक्ति अपने जीवन के पापों से मुक्त हो जाता है। जो भक्त रथ की रस्सी खींचते हैं, उन्हें सौ यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। यही कारण है कि न सिर्फ भारत से, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु इस यात्रा का हिस्सा बनने पुरी पहुंचते हैं। यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक रूप से, बल्कि सामाजिक रूप से भी एकता, समानता और आस्था का बड़ा संदेश देता है।
दरअसल पुरी की रथ यात्रा एक ऐसा पर्व बन चुका है, जहां जाति-धर्म की दीवारें गिर जाती हैं और हर कोई सिर्फ ‘जय जगन्नाथ’ की गूंज में शामिल हो जाता है। रथ यात्रा के दौरान जो सांस्कृतिक झलक मिलती है, वह किसी उत्सव से कम नहीं होती। ढोल-नगाड़ों की गूंज, मंत्रों की ध्वनि और भक्तों की भीड़, यह सब मिलकर एक ऐसा अनुभव बनाते हैं जिसे जीवनभर नहीं भुलाया जा सकता है।





