आज की तेज रफ्तार जिंदगी में हम सब एक ही दौड़ में शामिल हैं अच्छी नौकरी, ज्यादा पैसा, बड़ा घर, नाम और पहचान। हमें लगता है कि जैसे ही यह सब मिल जाएगा, जिंदगी अपने आप खुशहाल हो जाएगी। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग नजर आती है। जिनके पास यह सब है, वे भी तनाव, बेचैनी और अकेलेपन से जूझ रहे हैं।
हम अक्सर देखते हैं कि सोशल मीडिया पर लोग मुस्कुराते चेहरे दिखाते हैं, लेकिन अंदर से टूटे होते हैं। इसी गहरी बेचैनी को लेकर एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज से सवाल किया, महाराज जी, मेरे पास सब कुछ है, फिर भी मुझे खुशी नहीं मिलती। आखिर सच्ची सफलता क्या है? इस सवाल का जवाब सिर्फ उस भक्त के लिए नहीं, बल्कि आज के हर इंसान के लिए है।
सफलता और पैसा होने के बाद भी क्यों है बेचैनी?
प्रेमानंद महाराज के सत्संग में एक भक्त ने अपनी पीड़ा खुलकर रखी। उसने कहा कि उसने जीवन में बहुत कुछ हासिल कर लिया है कामयाबी, सम्मान और पैसा लेकिन इसके बावजूद उसका मन अशांत रहता है। वह खुद से पूछता है कि आखिर कमी कहां है। यह सवाल आज लाखों लोगों के मन में है। बाहर से सब कुछ ठीक दिखता है, लेकिन अंदर एक खालीपन बना रहता है। यही खालीपन इंसान को थका देता है। प्रेमानंद महाराज ने इस सवाल को बहुत ध्यान से सुना और फिर ऐसा उत्तर दिया, जो सीधे दिल को छू जाता है।
प्रेमानंद महाराज का सीधा संदेश
प्रेमानंद महाराज ने बहुत सरल भाषा में कहा कि आज के समय में हमने सफलता की परिभाषा ही गलत बना ली है। समाज ने हमें सिखाया है कि बड़ा पद, मोटा बैंक बैलेंस और चमक-दमक वाली जिंदगी ही सफलता है। हम भी बिना सोचे-समझे इसी धारणा के पीछे भागते रहते हैं। महाराज जी ने कहा कि अगर पैसा ही खुशी देता, तो सबसे अमीर लोग सबसे ज्यादा खुश होते। लेकिन सच्चाई यह है कि कई अमीर लोग भी नींद की गोली खाकर सोते हैं, डॉक्टरों के चक्कर लगाते हैं और मानसिक तनाव से गुजरते हैं। जिस चीज को पाने के लिए हम तड़पते हैं, वह किसी और के पास पहले से होती है, फिर भी वह व्यक्ति दुखी रहता है। इससे साफ है कि बाहर की चीजें मन को सच्चा सुख नहीं दे सकतीं।
Premanand Maharaj के अनुसार सच्ची खुशी कहां छुपी है?
प्रेमानंद महाराज ने बताया कि सच्ची खुशी न तो धन में है, न ही पद और प्रतिष्ठा में। असली आनंद परमात्मा से जुड़ने में है। उन्होंने शास्त्रों का उदाहरण देते हुए कहा, ब्रह्म भूता प्रसन्न आत्मा यानी जो व्यक्ति अपने मन को भगवान से जोड़ लेता है, वही सच्चे अर्थों में प्रसन्न रहता है। दुनिया की चीजें सिर्फ थोड़ी देर का सुख देती हैं। नया मोबाइल, नई गाड़ी या नई नौकरी कुछ समय तक खुशी देती है, लेकिन फिर वही खालीपन लौट आता है। इसके उलट, भगवान से जुड़ने वाला आनंद स्थायी होता है। यह ऐसा सुख है, जो हालात बदलने पर भी मन को शांत रखता है।
नकारात्मक सोच ही दुख की सबसे बड़ी वजह
प्रेमानंद महाराज ने यह भी बताया कि दुख का एक बड़ा कारण हमारी अपनी नकारात्मक सोच है। हम हमेशा उस चीज पर ध्यान देते हैं जो हमारे पास नहीं है, लेकिन जो हमारे पास है, उसकी कद्र नहीं करते। महाराज जी ने कहा अगर आपका शरीर स्वस्थ है, आंखें देख सकती हैं, कान सुन सकते हैं, दो वक्त का भोजन मिल रहा है, तो यह भी ईश्वर की बहुत बड़ी कृपा है। लेकिन हम इन सबको सामान्य मान लेते हैं और शिकायत करते रहते हैं। यही शिकायत धीरे-धीरे मन को दुखी बना देती है।





