Sat, Dec 27, 2025

आज है सीता नवमी? जानें पूजा का सही तरीका, मंत्र और शुभ मुहूर्त

Written by:Bhawna Choubey
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आज की सुबह माता सीता के जन्मोत्सव से रोशन है, जानिए सीता नवमी 2025 की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और मंत्र, ताकि आपका घर भी भर जाए सुख-समृद्धि से।
आज है सीता नवमी? जानें पूजा का सही तरीका, मंत्र और शुभ मुहूर्त

आज 5 मई 2025 से और देश भर में सीता नवमी (Sita Navami 2025) का पावन पर्व मनाया जा रहा है। यह दिन भगवान श्रीराम की पत्नी और जनकपुरी की राजकुमारी माता सीता के जन्म की याद में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सीता नवमी के दिन जो भी श्रद्धा और भक्ति से माता पिता की पूजा करता है, उसकी जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

ख़ासतौर पर महिलाएँ उपवास रखती है और अच्छी वैवाहिक जीवन की कामना करती है। इस मौक़े पर मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भक्तजन माता सीता के चरित्र से प्रेरणा लेते हैं। अगर आप भी इस शुभ दिन पर उपवास या पूजा करना चाहती है, तो आज हम आपको से आर्टिकल में बताएंगे कि आप किस तरह से आसानी से पूजा कर सकती है साथ ही साथ कुछ मंत्र और विधि भी बताएंगे।

सीता नवमी 2025 व्रत का महत्व

सीता नवमी को जनकी नवमी के नाम से भी जाना जाता है और यह पर्व शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन देवी सीता के पृथ्वी से प्रकट होने की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं और भगवान राम-सीता की पूजा कर वैवाहिक जीवन में प्रेम और सौहार्द की कामना करती हैं।

सीता नवमी की पूजा विधि

  • सबसे पहले व्रत करने वाली महिलाएं स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
  • माँ सीता और भगवान श्रीराम को पीले वस्त्र पहनाएं।
  • रोली, अक्षत, पुष्प, फल, और मिठाई से पूजा करें।
  • दीपक और धूप जलाकर रामायण पाठ या सीता चरित्र का पाठ करें।
  • अंत में आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
  • व्रत रखने वाली महिलाएं पूरे दिन फलाहार ले सकती हैं और शाम को व्रत खोल सकती हैं।
  • इस पूजा से वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं का समाधान होता है और कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है।

 ये मंत्र देंगे पुण्य फल और आशीर्वाद

1. सीता माता बीज मंत्र:
ॐ सीतायै नमः

2. विवाह सुख हेतु मंत्र:
ॐ जानकी वल्लभाय स्वाहा

3. संतान सुख के लिए:
सीता रामाय नमः

सीता नवमी का धार्मिक महत्व और पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, मिथिला नरेश राजा जनक ने जब एक बार अपने खेत की जुताई की थी, तब उन्हें हल की नोक से एक बालिका पृथ्वी से प्रकट होती हुई मिली। यह बालिका थीं माता सीता, जिन्हें धरती की पुत्री और ‘भूमि सुता’ कहा जाता है। राजा जनक ने उन्हें अपनी पुत्री रूप में पाला और उनका नाम ‘जानकी’ रखा।

भगवान राम से विवाह के बाद माता सीता ने धर्म, सेवा, त्याग और स्त्री धर्म की मिसाल कायम की। इसलिए उनका जन्मदिवस महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन का व्रत महिलाओं के लिए विवाह में सामंजस्य, संतान सुख और कुल कल्याण का प्रतीक बन गया है।

सीता नवमी 2025 क्यों मनाना चाहिए हर स्त्री को यह पर्व?

आज के आधुनिक समय में भी सीता नवमी जैसे पर्व हमें हमारे संस्कारों और पारिवारिक मूल्यों की याद दिलाते हैं। माता सीता केवल एक देवी नहीं बल्कि त्याग, साहस, संयम और समर्पण की प्रतीक हैं।

इस पर्व के माध्यम से हम क्या कर सकते हैं?

  • हम अपने परिवार में संस्कारों की स्थापना कर सकते हैं।
  • महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में सहनशीलता और प्रेम को बढ़ावा दे सकती हैं।
  • यह दिन महिलाओं को यह प्रेरणा देता है कि जीवन की किसी भी परिस्थिति में धैर्य और विवेक को नहीं छोड़ना चाहिए।
  • विशेष रूप से यह पर्व माताओं और बहनों को धार्मिक जुड़ाव और आध्यात्मिक संतुलन देने का कार्य करता है। इसलिए यह दिन केवल व्रत का नहीं, बल्कि आत्मिक ऊर्जा और आस्था के पुनर्जागरण का दिन है।

सीता नवमी और राम नवमी में क्या है अंतर?

हालांकि राम नवमी और सीता नवमी दोनों पर्व नवमी तिथि को आते हैं, लेकिन इनका भाव और संदर्भ अलग है। राम नवमी भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, जो चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को आता है, वहीं सीता नवमी वैशाख मास की शुक्ल नवमी को आती है और देवी सीता के अवतरण को समर्पित होती है। सीता नवमी का आयोजन विशेष रूप से मिथिला, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में बड़े ही धूमधाम से होता है। इस दिन महिलाओं द्वारा विशेष सीता-राम विवाह उत्सव का आयोजन भी होता है, जो विवाह योग्य कन्याओं के लिए बेहद शुभ माना जाता है।