कई बार ऐसा होता है कि ज़िंदगी में कोई बड़ी परेशानी नहीं होती, घर-परिवार ठीक रहता है, काम भी चल रहा होता है, फिर भी मन के अंदर एक अजीब सी बेचैनी बनी रहती है। नींद ठीक से नहीं आती, छोटी-छोटी बातों पर घबराहट होती है और मन बार-बार किसी अनजाने डर में उलझ जाता है।ऐसे में व्यक्ति खुद भी समझ नहीं पाता कि आखिर परेशानी है क्या।
ज्योतिष शास्त्र इस सवाल का एक गहरा जवाब देता है। ज्योतिष के अनुसार, मन केवल परिस्थितियों से नहीं, बल्कि कुंडली में बैठे ग्रहों से भी प्रभावित होता है। जब कुछ खास ग्रह कमजोर, अशुभ या पीड़ित स्थिति में होते हैं, तो व्यक्ति मानसिक रूप से अस्थिर महसूस करने लगता है। इसी वजह से आज हम विस्तार से बता रहे हैं कि मन क्यों रहता है बेचैन, इसके पीछे कुंडली के कौन-से ग्रह जिम्मेदार हो सकते हैं और इससे राहत पाने के आसान उपाय क्या हैं।
चंद्रमा
ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का स्वामी माना गया है। हमारा भावनात्मक संतुलन, सोचने की क्षमता और मानसिक शांति सीधे चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है। अगर कुंडली में चंद्रमा नीच का हो, पाप ग्रहों से घिरा हो या छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति का मन बार-बार डगमगाने लगता है। ऐसे लोग बहुत जल्दी भावुक हो जाते हैं और छोटी-छोटी बातों पर परेशान हो जाते हैं। कमजोर चंद्रमा वाले व्यक्ति को बार-बार बेचैनी, डर और असुरक्षा का भाव रहता है। निर्णय लेने में दिक्कत होती है और मन स्थिर नहीं रह पाता। यही वजह है कि ज्योतिष में मानसिक अशांति की पहली वजह चंद्रमा को माना जाता है।
राहु-केतु
राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है। ये ग्रह सीधे दिखाई नहीं देते, लेकिन इनका असर मन और सोच पर बहुत गहरा होता है। जब राहु कुंडली में चंद्रमा के साथ आ जाए या उसे देखे, तो मन में अकारण डर पैदा होने लगता है। व्यक्ति को लगता है कि कुछ बुरा होने वाला है, जबकि असल में कोई वजह नहीं होती। बार-बार नकारात्मक विचार आना राहु के प्रभाव की बड़ी पहचान है।
केतु व्यक्ति को अंदर से काट देता है। ऐसे लोग खुद में ही खोए रहते हैं, किसी बात में मन नहीं लगता और एकाग्रता कमजोर हो जाती है। केतु के कारण व्यक्ति को जीवन से विरक्ति या भ्रम की स्थिति महसूस होती है। जब राहु-केतु चंद्रमा से जुड़ते हैं, तो ग्रहण दोष बनता है, जो मन की बेचैनी को कई गुना बढ़ा देता है।
शनि
शनि को कर्म और अनुशासन का ग्रह माना जाता है, लेकिन जब यही शनि मन के कारक चंद्रमा के साथ बैठ जाए, तो स्थिति कठिन हो जाती है। चंद्रमा और शनि की युति से विष योग बनता है। इस योग में व्यक्ति अंदर से भारीपन महसूस करता है। बिना कारण उदासी, अकेलापन और नकारात्मक सोच हावी रहने लगती है। ऐसे लोग खुद को दूसरों से कटा हुआ महसूस करते हैं। बात करने का मन नहीं करता और हर चीज बोझ लगने लगती है। लंबे समय तक यह स्थिति रहने पर अवसाद की संभावना भी बढ़ जाती है।
बुध
बुध बुद्धि, तर्क और सोचने की क्षमता का ग्रह है। अगर बुध कमजोर या पीड़ित हो, तो व्यक्ति जरूरत से ज्यादा सोचने लगता है। बार-बार एक ही बात को दिमाग में घुमाना, बेवजह चिंता करना और हर छोटी समस्या को बड़ा बना लेना खराब बुध की निशानी है। ऐसे लोग खुद की ही सोच में उलझकर मानसिक शांति खो बैठते हैं।
मन क्यों रहता है बेचैन
अगर कुंडली में चंद्रमा कमजोर है, राहु-केतु का प्रभाव है, शनि से विष योग बन रहा है या बुध पीड़ित है, तो मन का बेचैन रहना स्वाभाविक है। ऐसे में केवल बाहरी उपायों से नहीं, बल्कि अंदरूनी संतुलन से ही राहत मिलती है। यही वजह है कि ज्योतिष शास्त्र मानसिक शांति के लिए ग्रहों के संतुलन पर जोर देता है।
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