आज सुबह 6 बजे बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की प्रमुख खालिदा जिया का निधन हो गया। 80 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। पिछले 20 दिनों से वे वेंटिलेटर पर थीं। बता दें कि उन्हें सीने में इंफेक्शन, डायबिटीज, लिवर, किडनी, गठिया और आंखों की परेशानी थी। उनके निधन की पुष्टि उनके परिवार और पार्टी नेताओं द्वारा की गई है। साल 1991 से 1996 और साल 2001 से 2006 तक खालिदा जिया बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं।
खालिदा जिया पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की पत्नी थीं। खालिदा जिया के निधन की खबर से बांग्लादेश के राजनीतिक जगत में शोक की लहर है। जानकारी दे दें कि 29 दिसंबर को ही खालिदा जिया ने चुनावी नामांकन दाखिल किया था। दोपहर करीब 3 बजे पार्टी के सीनियर नेता बोगरा-7 सीट से उनका नामांकन पत्र जमा करने पहुंचे थे।
क्यों किया था खालिदा जिया ने नामांकन?
हालांकि इस दौरान सभी जानते थे कि खालिदा जिया की तबीयत नाजुक है और वे वेंटिलेटर पर थीं, लेकिन बावजूद इसके पार्टी की ओर से नामांकन का फैसला लिया गया था। दरअसल जिस सीट से खालिदा जिया चुनाव लड़ने वाली थीं, उस सीट का बेहद महत्व है। इसी इलाके में पार्टी के संस्थापक और खालिदा जिया के पति जियाउर रहमान का घर रहा है और इसी सीट से खालिदा जिया तीन बार चुनाव भी जीत चुकी थीं। बता दें कि 25 दिसंबर को खालिदा जिया के बड़े बेटे और BNP के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान लंदन से बांग्लादेश लौटे थे। वे 2008 से लंदन में रह रहे थे। 23 नवंबर को ढाका के एवेरकेयर अस्पताल में खालिदा जिया को भर्ती कराया गया था।
11 दिसंबर को वेंटिलेटर पर रखा गया था
हालांकि उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई। विदेश से आए डॉक्टरों ने भी उनका इलाज किया, लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ, जिसके बाद उन्हें आईसीयू में शिफ्ट किया गया और 11 दिसंबर को वेंटिलेटर पर रखा गया था। 27 दिसंबर को उनके बेटे ने अस्पताल में उनसे मुलाकात की थी। बता दें कि तारिक रहमान की पत्नी भी डॉक्टर हैं। खालिदा जिया का राजनीतिक करियर हमेशा सुर्खियों में रहा। उनका जन्म 15 अगस्त 1945 को दिनाजपुर में हुआ था। 1981 में पति की हत्या के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुईं। 1984 में वे BNP की चेयरपर्सन बनीं। वहीं 2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में उन्हें 10 साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन 2024 में अगस्त में हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था। रिहाई के बाद वे इलाज के लिए लंदन गई थीं और चार महीने बाद वापस बांग्लादेश लौटी थीं। वहीं अब 30 दिसंबर को उनका निधन हो गया है।





