छत्रपति संभाजीनगर में होने वाले आगामी महानगरपालिका चुनाव से ठीक पहले ठाकरे गुट को बड़ा झटका लगा है। 37 साल से निष्ठावान रहकर काम कर रहे सहसंपर्क प्रमुख और माजी महापौर त्र्यंबक तुपे ने पद से इस्तीफा देने के बाद अब शिंदे गुट की शिवसेना में प्रवेश कर लिया है। उनका पक्षप्रवेश उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मौजूदगी में हुआ। बताया जा रहा है कि इस प्रवेश की पहल जिले के पालकमंत्री संजय शिरसाठ ने की। इस मौके पर मराठवाड़ा सचिव पटवर्धन, माजी महापौर विकास जैन और दीपक पवार भी मौजूद थे। तुपे ने कहा कि उद्धव ठाकरे से कोई नाराज़गी नहीं है, लेकिन अपने वार्ड के विकास को ध्यान में रखते हुए उन्हें यह निर्णय लेना पड़ा।
ठाकरे गुट को झटका
त्र्यंबक तुपे का नाम शहर के शिवसेना नेताओं में अहम माना जाता है। 1988 में बाला साहेब ठाकरे की लहर के समय उन्होंने शिवसेना से जुड़कर सक्रिय राजनीति शुरू की थी। लगातार मेहनत और काम के बल पर उन्हें पार्टी में अहम जिम्मेदारियां मिलती गईं। वर्ष 2016 से 2019 तक वे महापौर रहे। इसके अलावा उन्होंने सभागृह नेता, सभापति और ग्रामीण भाग के जिल्हा प्रमुख के रूप में भी कार्य किया। हाल ही में उन्हें छत्रपति संभाजीनगर जिले का सहसंपर्क प्रमुख बनाया गया था। उनकी लंबी राजनीतिक यात्रा ने उन्हें स्थानीय राजनीति में मजबूत पकड़ दिलाई है।
पार्टी छोड़ने के बाद तुपे ने साफ किया कि उनका उद्धव ठाकरे से कोई व्यक्तिगत विवाद नहीं है। लेकिन हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान हालात ने उन्हें निराश किया। किशनचंद तनवाणी के अचानक शिंदे गुट में जाने के बाद ठाकरे गुट ने पहले राजू वैद्य और फिर त्र्यंबक तुपे को जिम्मेदारी दी थी। उस समय उन्हें जिला प्रमुख का पद देने का आश्वासन दिया गया था, मगर वह पूरा नहीं हुआ। तुपे का कहना है कि अब अपने वार्ड के विकास को देखते हुए उन्हें यह कदम उठाना जरूरी था।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस घटनाक्रम से आने वाले महानगरपालिका चुनाव में ठाकरे गुट को नुकसान हो सकता है। संभाजीनगर में तुपे का मजबूत जनाधार माना जाता है। ऐसे में उनके शिंदे सेना में शामिल होने से स्थानीय स्तर पर चुनावी समीकरण बदल सकते हैं। अब देखना यह होगा कि चुनावी मैदान में तुपे की भूमिका कैसी रहती है और यह बदलाव किसके पक्ष में जाता है।





