शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की। यह मुलाकात विधान परिषद के अध्यक्ष राम शिंदे के चैंबर में हुई और करीब आधे घंटे तक चली। उद्धव के साथ उनके बेटे और पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे भी मौजूद थे। यह मुलाकात फडणवीस के उस बयान के एक दिन बाद हुई जिसमें उन्होंने मजाकिया लहजे में उद्धव को सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल होने का ऑफर दिया था। दोनों पक्षों ने मुलाकात के विवरण को सार्वजनिक नहीं किया जिससे महाराष्ट्र की राजनीति में अटकलों का दौर शुरू हो गया है।
फडणवीस ने बुधवार को विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे के विदाई समारोह में कहा था, “उद्धव जी, 2029 तक सरकार बदलने की कोई गुंजाइश नहीं है। हम विपक्ष में आने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन आपके पास सत्ता पक्ष में आने का मौका है। इस पर अलग ढंग से विचार किया जा सकता है।” इस बयान के बाद हंसी के ठहाके गूंजे थे लेकिन इसने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी।
मुंबई के नगर निगम चुनाव की तैयारियां
यह मुलाकात ठाकरे परिवार के पुनर्मिलन के समय भी हुई है। हाल ही में उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे के साथ दो दशकों बाद सुलह की है। दोनों ने मुंबई के नगर निगम चुनावों में एक साथ उतरने का फैसला किया है जिससे राज्य की सियासत में नया समीकरण बनने की संभावना है। पांच साल पहले 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूट गया था जब मुख्यमंत्री पद के बंटवारे पर सहमति नहीं बनी। इसके बाद एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के बड़े धड़े को तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई और वर्तमान में फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं।
महाराष्ट्र की अस्थिर राजनीति में अहम घटना
उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस की मुलाकात महाराष्ट्र की अस्थिर राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना है। पिछले पांच वर्षों में राज्य में दल-बदल और राजनीतिक पुनर्गठन की कई घटनाएं देखी गई हैं। फडणवीस का मजाकिया ऑफर और इस मुलाकात का समय यह संकेत देता है कि बीजेपी शिवसेना (यूबीटी) को अपने पाले में लाने की संभावनाएं तलाश रही हो सकती है। खासकर तब जब उद्धव और राज ठाकरे के बीच सुलह से विपक्षी गठबंधन मजबूत हो रहा है। यह मुलाकात बीजेपी की रणनीति का हिस्सा हो सकती है जिसका लक्ष्य मुंबई नगर निगम जैसे अहम चुनावों से पहले विपक्ष की एकता को कमजोर करना हो।





