आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर इंसान शांति और सुकून चाहता है, लेकिन बहुत कम लोग यह समझ पाते हैं कि असली शांति बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर होती है। वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज अपने सहज और सरल वचनों से इसी भीतर की यात्रा का रास्ता दिखाते हैं। हाल ही में उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब देखा जा रहा है, जिसमें वे पवित्रता के वास्तविक अर्थ पर खुलकर बात करते हैं।
इस वीडियो में एक भक्त प्रेमानंद महाराज से सवाल करता है कि पवित्र जीवन के नियम क्या हैं। इसके जवाब में महाराज कोई कठिन शास्त्रीय भाषा नहीं, बल्कि आम इंसान की समझ में आने वाले शब्दों में बताते हैं कि तन और मन की शुद्धि क्यों जरूरी है और यह हमारे जीवन को कैसे बदल सकती है।
प्रेमानंद महाराज के अनुसार पवित्रता का वास्तविक अर्थ
प्रेमानंद महाराज साफ कहते हैं कि पवित्रता केवल बाहर से साफ कपड़े पहनने या धार्मिक दिखावे तक सीमित नहीं है। सच्ची पवित्रता एक पूरी जीवन पद्धति है, जो इंसान को अंदर से बदल देती है। उनके अनुसार पवित्र जीवन के तीन मुख्य आधार होते हैं, शरीर की शुद्धता, वाणी की शुद्धता और मन की शुद्धता। अगर इन तीनों में से एक भी अशुद्ध है, तो जीवन में सच्ची शांति नहीं आ सकती। यही वजह है कि प्रेमानंद महाराज पवित्रता को केवल धार्मिक नियम नहीं, बल्कि रोजमर्रा की आदत बताते हैं।
शरीर की शुद्धता
प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि शरीर की साफ-सफाई आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत है। अगर शरीर साफ नहीं रहेगा, तो मन भी साफ नहीं रह सकता। वे कहते हैं कि शौच के बाद ठीक से सफाई करना, स्नान करना, साफ कपड़े पहनना और हाथ-पैर धोना बहुत जरूरी है। महाराज के अनुसार, जब व्यक्ति गंदगी में रहता है, तो उसका मन भी धीरे-धीरे गंदे और गलत विचारों की ओर जाने लगता है।
वाणी की शुद्धता
प्रेमानंद महाराज वाणी की पवित्रता को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। वे कहते हैं कि हम जो बोलते हैं, वही हमारी पहचान बनता है। कटु शब्द, गाली-गलौज, झूठ और अपमानजनक भाषा भी अपवित्रता का ही रूप है। उनके अनुसार, वाणी ऐसी होनी चाहिए जिससे किसी का दिल न दुखे। अगर हमारे शब्द दूसरों को शांति देते हैं, तो हमारे भीतर भी शांति बनी रहती है।
मन की शुद्धता
प्रेमानंद महाराज के अनुसार मन की शुद्धता सबसे कठिन काम है, लेकिन यही सच्ची साधना है। मन में आने वाले गलत, नकारात्मक और विकारपूर्ण विचार ही इंसान को अंदर से अशांत कर देते हैं। महाराज कहते हैं कि अगर मन पवित्र हो जाए, तो बुद्धि अपने आप भगवान के चरणों में लग जाती है। तब व्यक्ति को भक्ति का असली आनंद मिलता है। मन की शुद्धता के बिना न तो पूजा सफल होती है और न ही जीवन में स्थायी शांति आती है।
भोजन की शुद्धि
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि मन की स्थिति सीधे उस भोजन से जुड़ी होती है, जिसे हम खाते हैं। जैसा अन्न होगा, वैसा ही मन बनेगा। अगर भोजन शुद्ध नहीं होगा, तो मन भी अशांत रहेगा। वे बताते हैं कि भोजन किस भाव से बनाया गया है और किस मनःस्थिति में खाया गया है, इसका गहरा असर हमारे मन पर पड़ता है। इसलिए सात्त्विक, शुद्ध और प्रेम भाव से बना भोजन करने की सलाह दी जाती है।
Disclaimer- यहां दी गई सूचना सामान्य जानकारी के आधार पर बताई गई है। इनके सत्य और सटीक होने का दावा MP Breaking News नहीं करता।





