आज देशभर में वीर बाल दिवस व्यापक रूप से मनाया जा रहा है। यह दिन सिख इतिहास के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादों, विशेष रूप से छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की अदम्य वीरता और बलिदान की स्मृति में समर्पित है। आज के दिन सीएम डॉ. मोहन यादव ने चारों साहिबजादों को श्रद्धांजलि दी है और कहा है कि धर्म एवं मानवता के लिए उनका त्याग विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।
आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण उपलब्धियां हासिल करने वाले बच्चों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया। यह पुरस्कार भारत सरकार द्वारा 5 से 18 वर्ष तक के बच्चों को नवाचार, शैक्षिक उपलब्धि, सामाजिक सेवा, कला-संस्कृति, खेल और बहादुरी जैसे क्षेत्रों में असाधारण प्रदर्शन के लिए दिया गया है।
वीर बाल दिवस आज
आज वीर बाल दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों के अद्भुत साहस, त्याग और बलिदान को याद करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। भारत सरकार ने साल 2022 में ये घोषणा की थी कि हर साल 26 दिसंबर को इस दिन को “वीर बाल दिवस” के रूप में मनाया जाएगा ताकि राष्ट्रीय युवा पीढ़ी साहिबजादों की वीर गाथा से प्रेरणा ले सकें।
मुख्यमंत्री ने दी श्रद्धांजलि
आज के दिन सीएम डॉ मोहन यादव ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि “परम श्रद्धेय गुरु गोबिंद सिंह जी के चार पुत्रों, साहिबजादा अजीत सिंह जी, साहिबजादा जुझार सिंह जी, साहिबजादा जोरावर सिंह जी, साहिबजादा फतेह सिंह जी के बलिदान दिवस ‘वीर बाल दिवस’ पर उन्हें सादर नमन-वंदन करता हूं। धर्म एवं मानवता के लिए उनका त्याग विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।”
राष्ट्रपति द्वारा बच्चों को सम्मानित किया गया
वीर बाल दिवस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित विशेष समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण उपलब्धियां हासिल करने वाले 20 बच्चों को ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’ से सम्मानित किया। ये बच्चे 18 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से चुने गए हैं जिन्होंने वीरता, कला-संस्कृति, पर्यावरण, सामाजिक सेवा, विज्ञान-प्रौद्योगिकी तथा खेल सहित अन्य क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।
वीर बाल दिवस का इतिहास
वीर बाल दिवस की जड़ें सिख इतिहास के 17वीं सदी में हैं जब गुरु गोबिंद सिंह जी के चारों पुत्रों साहिबजादे अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह मुगल शासन के अत्याचार के खिलाफ दृढ़ता से डटे रहे। इस दिन विशेष रूप से छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह (7 वर्ष) की शहादत को याद किया जाता है।
मुगल शासक औरंगजेब के समय गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों और पहाड़ी राजाओं के साथ संघर्ष कर रहे थे। आनंदपुर साहिब की घेराबंदी के बाद उनका परिवार अलग हो गया। तब बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह (18 वर्ष) और बाबा जुझार सिंह (14 वर्ष) चमकौर की लड़ाई में शहीद हुए। छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह अपनी दादी माता गुजरी जी के साथ सरहिंद के नवाब वजीर खान द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। इस्लाम कबूल करने के दबाव पड़ने पर उन्होंने अपनी आस्था नहीं त्यागी और सिख धर्म छोड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद उन्हें दीवार में जिंदा चिनवा दिया गया। ये खबर सुनकर उनकी दादी मां ने भी अपने प्राण त्याग दिए। यह भारतीय इतिहास की सबसे ह्रदयविदारक घटनाओं में से एक मानी जाती है। इस दिन को धर्म, साहस और न्याय की रक्षा के प्रतीक स्वरूप ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।





