Fri, Dec 26, 2025

पोखरण 1998 से लाहौर बस यात्रा तक, कैसे अटल बिहारी वाजपेयी के फैसलों ने बदली भारत की वैश्विक रणनीति

Written by:Ankita Chourdia
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Atal Bihari Vajpayee Vision and Decisions : वर्ष 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण और उसके बाद कारगिल संघर्ष के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी की नीतियों ने भारत की वैश्विक छवि को नया आकार दिया। भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता और साथ ही संवाद का रास्ता खुला रखना उनकी कूटनीति की पहचान बना।
पोखरण 1998 से लाहौर बस यात्रा तक, कैसे अटल बिहारी वाजपेयी के फैसलों ने बदली भारत की वैश्विक रणनीति

भारत की रणनीतिक और विदेश नीति के इतिहास में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का कार्यकाल एक निर्णायक मोड़ माना जाता है। वर्ष 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण से लेकर कारगिल युद्ध और लाहौर बस यात्रा तक, उनके फैसलों ने न केवल भारत की सैन्य क्षमताओं को दुनिया के सामने रखा, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी देश को एक नई पहचान दी।

वर्ष 1998 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया, तो यह फैसला भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच लिया गया था। उस समय वैश्विक प्रतिबंधों का खतरा मंडरा रहा था, लेकिन वाजपेयी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए यह कदम उठाया। यह भारत की रणनीतिक नीति का वह क्षण था जिसने स्पष्ट कर दिया कि देश अपनी सुरक्षा के लिए कड़े फैसले लेने से पीछे नहीं हटेगा।

सैन्य कार्रवाई और कूटनीति का संतुलन

पोखरण के बाद कारगिल संघर्ष ने भारत की सैन्य और कूटनीतिक परीक्षा ली। इस दौरान भारत ने एक तरफ अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए सीमित सैन्य कार्रवाई की, तो दूसरी तरफ वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने में भी सफलता पाई। कारगिल के दौरान दिखाई गई संयमित आक्रामकता को एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि माना गया, जिसने दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति है।

संवाद का रास्ता और लाहौर बस यात्रा

वाजपेयी की विदेश नीति का सबसे अहम पहलू यह था कि कठोर सैन्य और रणनीतिक निर्णयों के बावजूद उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ बातचीत के दरवाजे कभी बंद नहीं किए। लाहौर बस यात्रा इसी सोच का परिणाम थी। इस पहल ने यह साबित किया कि शांति की कोशिशें कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की निशानी होती हैं।

जानकारों के मुताबिक, वाजपेयी की नीति केवल शक्ति प्रदर्शन या केवल आदर्शवाद पर नहीं टिकी थी। यह राष्ट्रीय हित, क्षेत्रीय स्थिरता और एक दीर्घकालिक दृष्टि का मिश्रण थी। आज भारत जिस वैश्विक भूमिका में नजर आता है, उसकी नींव में उस दौर के रणनीतिक फैसले स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।