इतिहास में चार साहिबज़ादों की शहादत का ज़िक्र आते ही जहन में युद्ध, बलिदान और मुग़ल सत्ता के अत्याचार की तस्वीरें उभरती हैं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में एक ऐसी शख्सियत भी थीं, जिनकी भूमिका अक्सर युद्ध के शोर में दब सी जाती है। वह थीं माता गुजरी। 1705 के उस कठिन दौर में जब परिवार बिखर गया था, तब माता गुजरी ही वह पहली व्यक्ति थीं जिन्होंने न केवल परीक्षा दी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रतिरोध का एक मूक मानक भी स्थापित किया।
साल 1705 में माता गुजरी उम्र के उस पड़ाव पर थीं, जहाँ व्यक्ति शारीरिक और मानसिक सहारे की उम्मीद करता है। लेकिन नियति ने उन्हें दो छोटे पोतों—साहिबज़ादा जोरावर सिंह और साहिबज़ादा फतेह सिंह—के साथ सरहिंद के ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया। कड़ाके की ठंड, सीमित भोजन और हर पल सिर पर मंडराता मौत का साया। सत्ता का पूरा जोर इस बात पर था कि बच्चों को डराया जाए, उनका मनोबल तोड़ा जाए और धर्म परिवर्तन के लिए विवश किया जाए।
मूक प्रतिरोध की मिसाल
इतिहास गवाह है कि इस बेहद तनावपूर्ण अवधि में माता गुजरी का कोई भी बयान, शिकायत या विनती दर्ज नहीं है। उन्होंने न तो मुग़ल अधिकारियों से कोई सौदा करने की कोशिश की और न ही अपनी रिहाई की गुहार लगाई। उनकी यह चुप्पी किसी बेबसी का नहीं, बल्कि स्पष्ट अस्वीकार का प्रतीक थी। उन्होंने बच्चों को शौर्य के बड़े-बड़े भाषण नहीं दिए, बल्कि अपने आचरण से सिखाया कि विपरीत परिस्थितियों में अडिग कैसे रहा जाता है।
जब दोनों छोटे साहिबज़ादों को दीवार में ज़िंदा चिनवाने का क्रूर फरमान सुनाया गया, तब भी माता गुजरी विचलित नहीं हुईं। उनकी ओर से कोई सार्वजनिक विलाप नहीं किया गया। बच्चों की शहादत के कुछ ही समय बाद उनका भी देहांत हो गया। इतिहास की किताबों में इसे अक्सर ‘स्वाभाविक मृत्यु’ लिख दिया जाता है, लेकिन महीनों के मानसिक दबाव और पोतों के बिछड़ने के गम को देखते हुए, यह उस महान परीक्षा का ही अंतिम चरण प्रतीत होता है।
साहस की नींव
चार साहिबज़ादों की कहानी निस्संदेह अदम्य साहस की गाथा है, लेकिन उस साहस की नींव माता गुजरी ने ही रखी थी। उन्होंने बच्चों को लड़ना नहीं, बल्कि झुकना अस्वीकार करना सिखाया। बिना किसी मंच या नारे के, उनकी स्थिरता ने बच्चों को वह आत्मबल दिया, जिसके सामने क्रूर सत्ता भी बौनी साबित हुई। आज के दौर में जब विरोध को अक्सर शोर और प्रदर्शन से मापा जाता है, माता गुजरी का यह शांत प्रतिरोध एक अलग ही नज़ीर पेश करता है।
डिस्क्लेमर: यह लेख ऐतिहासिक स्रोतों और प्रचलित सिख इतिहास विवरणों पर आधारित है। उद्देश्य किसी धार्मिक या राजनीतिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं, बल्कि शहादत से जुड़े मानवीय मूल्यों को प्रस्तुत करना है।





