सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर यह पूछा है कि क्या अदालतें राज्य विधानसभाओं की ओर से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय-सीमा और प्रक्रिया तय कर सकती हैं। यह मामला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से 13 मई को सुप्रीम कोर्ट से राय मांगने के बाद शुरू हुआ जिसमें उन्होंने 14 सवाल उठाए थे।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर शामिल हैं। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी से भी इस मामले में सहायता मांगी है। अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी और अगस्त के मध्य से पक्षों की दलीलें सुनी जाएंगी।
राज्यपालों को कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को दिए अपने एक फैसले में कहा था कि राज्यपालों को विधानसभा से पारित विधेयकों पर समय-सीमा के भीतर फैसला लेना होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपालों को कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होगी। अगर राष्ट्रपति किसी विधेयक को मंजूरी नहीं देते तो राज्य सरकारें सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट से मांगी थी राय
राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग कर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को महत्वपूर्ण कानूनी सवालों पर सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेने का अधिकार देता है। यह मामला विधायी प्रक्रिया और शासन व्यवस्था से जुड़ा है जिस पर कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण होगा।





