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Sat, Dec 20, 2025

धन, सुख और सौभाग्य पाने के लिए वरुथिनी एकादशी पर ज़रूर करें ये काम

Written by:Bhawna Choubey
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हिंदू धर्म में एकादशी का खास महत्व है और वरुथिनी एकादशी उन खास तिथियों में से एक मानी जाती है, जब भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।
धन, सुख और सौभाग्य पाने के लिए वरुथिनी एकादशी पर ज़रूर करें ये काम

हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व बताया गया है। हर महीने में दो एकादशी आती है और इसमें व्रत पूजन करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। ऐसा ही एक ख़ास दिन है वरूथिनी एकादशी, यह एकादशी वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इसी दिन व्रत और भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन के तमाम कष्ट दूर हो जाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में बरकत बनी रहती है। ये दिन भगवान विष्णु के साथ साथ माता लक्ष्मी को भी समर्पित होता है। इस दिन तुलसी पूजन का भी ख़ास महत्व है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि तुलसी पूजन के दौरान अगर आप तुलसी माता स्तोत्र का पाठ करते हैं तो ये बहुत ही फलदायक होता है।

क्यों करना चाहिए तुलसी स्तोत्र का पाठ?

हिन्दू धर्म नहीं तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है। तुलसी में माता लक्ष्मी का वास होता है, यह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। यही कारण है कि हर घर में तुलसी का पौधा लगाने की सलाह दी जाती है। रोज़ाना माता तुलसी पर जल अर्पित करना बहुत शुभ होता है, अगर आप शीघ्र ही शुभ फल पाना चाहते हैं तो वरूथिनी एकादशी का मौक़ा बिलकुल भी अपने हाथ से न जाने दें, इसी दिन तुलसी को जल्द अर्पित करने के बाद पूजा पाठ करें और तुलसी स्तोत्र का पाठ ज़रूर करें।

॥ तुलसी माता स्तोत्रम् ॥

जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः॥1॥
नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके॥2॥
तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम्॥3॥
नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम्।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात्॥4॥
तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम्।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः॥5॥
नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाञ्जलिं कलौ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे॥6॥
तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः॥7॥
तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके॥8॥
तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन्॥9॥
नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके॥10॥
इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः॥11॥
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनः प्रिया॥12॥
लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः॥13॥
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया॥14॥
तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनः प्रिये॥15॥
॥ इति श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥