कमलनाथ ने मध्यप्रदेश की शिक्षा की स्थिति को चिंताजनक बताते हुए सवाल उठाए हैं। उन्होंने सरकारी और निजी स्कूलों में बच्चों के नामांकन में भारी गिरावट का हवाला देते हुए शिक्षा विभाग में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार की आशंका जताई है। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि जितनी संख्या में बच्चों का स्कूल से ड्रॉपआउट बताया जा रहा है, वो कई गंभीर सवाल खड़े करता है।
उन्होंने इस मामले की जांच कराने की मांग की है और कहा है कि यह मामला सिर्फ शिक्षा विभाग की लापरवाही नहीं, बल्कि एक बड़े भ्रष्टाचार की ओर संकेत करता है। इसी के साथ उन्होंने स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता, शिक्षकों की नियुक्ति और योजनाओं की पारदर्शी निगरानी सुनिश्चित करने की मांग भी की।
कमलनाथ ने सरकारी और निजी स्कूलों में बच्चों के ड्रॉपआउट पर उठाए सवाल
कमलनाथ ने कहा है कि वर्ष 2010-11 में मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों (कक्षा 1 से 8) में 1.05 करोड़ बच्चे नामांकित थे, जो 2021-22 तक घटकर मात्र 54.58 लाख रह गए। उन्होंने कहा कि ‘इस अवधि में 50.72 लाख बच्चों का नामांकन से गायब होना एक चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है। निजी स्कूलों में भी यही रुझान देखने को मिला, जहां 2010-11 में 48.94 लाख बच्चों का नामांकन था, जो 2021-22 में घटकर 43.93 लाख हो गया, यानी लगभग 5 लाख बच्चों की कमी दर्ज हुई है।’
फर्जी नामांकन की आशंका जताई, भ्रष्टाचार के आरोप लगाए
उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का पढ़ाई छोड़ देना असंभव-सा प्रतीत होता है। कमलनाथ ने आशंका जताई कि मिड डे मील, यूनिफॉर्म, किताबों और छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं में भ्रष्टाचार के लिए फर्जी नामांकन दिखाए गए होने की पूरी संभावना हैं। यह स्थिति शिक्षा विभाग में गंभीर अनियमितताओं की ओर इशारा करती है।
सरकार के दावों पर सवाल
कमलनाथ ने सरकार के उस दावे पर भी सवाल उठाए जिसमें कहा गया कि बीते वर्षों में शिक्षा पर 1617 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जिसमें से 48.17 प्रतिशत 2919 सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने पर खर्च हुए। उन्होंने पूछा कि इतने बड़े खर्च के बावजूद बच्चों की संख्या आधी क्यों हो गई और स्कूलों की स्थिति में सुधार क्यों नहीं दिखा? उन्होंने कहा कि यह सरकार की नीयत और नीति दोनों पर सवाल खड़ा करता है।
स्वतंत्र जांच की मांग
पूर्व मुख्यमंत्री ने इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि ‘यह मामला सिर्फ शिक्षा विभाग की लापरवाही नहीं, बल्कि एक बड़े भ्रष्टाचार की ओर संकेत करता है। इसलिए आवश्यक है कि इस पूरे प्रकरण की स्वतंत्र जांच कराई जाए। साथ ही स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता, शिक्षकों की नियुक्ति और योजनाओं की पारदर्शी निगरानी सुनिश्चित की जाए।’
मध्यप्रदेश में शिक्षा की स्थिति बेहद चिंताजनक है। वर्ष 2010-11 में राज्य के सरकारी स्कूलों (कक्षा 1 से 8) में 1.05 करोड़ बच्चों का नामांकन था। लेकिन पिछले 15 वर्षों में यह संख्या लगातार घटती रही और 2021-22 तक घटकर 54.58 लाख पर पहुँच गई। इस अवधि में 50.72 लाख बच्चों का नामांकन से… pic.twitter.com/rz7TVoX0qF
— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) August 27, 2025





