उमंग सिंघार ने ‘मनरेगा’ को नए विधेयक के माध्यम से बदलकर विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन (ग्रामीण) करने के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार को घेरा है। संसद में पेश आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि एक तरफ मध्यप्रदेश में मनरेगा मजदूरों को औसतन सिर्फ 49 दिन काम मिला है, केंद्र पर 772 करोड़ की देनदारी बाकी है और इस बीच मोदी सरकार नए विधेयक में चालीस प्रतिशत व्यय का भार राज्य सरकार पर डालने की तैयारी कर रही है।
नेता प्रतिपक्ष ने सवाल किया कि राज्य के राजस्व स्त्रोत पहले ही सीमित है और बढ़ते कर्ज के बीच अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालना कितना उचित है। उन्होंने कहा कि इससे मध्यप्रदेश सहित अन्य कई राज्यों की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसी के साथ उन्होंने इस योजना में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए।
मध्यप्रदेश में मनरेगा की स्थिति पर उमंग सिंघार ने किए सवाल
केंद्र सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में मौजूदा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को समाप्त कर विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन (ग्रामीण) (VB-G RAM G) बिल प्रस्तावित किया है। कांग्रेस इसे लेकर लगातार सरकार पर हमलावर है। उसका कहना है कि ये महात्मा गांधी का अपमान है और मनरेगा समाप्त होने से देश के सबसे गरीब मज़दूर का हक छीना जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने संसद में पेश आंकड़ों के हवाले से कहा कि मध्यप्रदेश में पहले ही मनरेगा की स्थिति चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में लगभग 52 लाख मजदूर मनरेगा के तहत पंजीकृत हैं, लेकिन पिछले तीन साल में उन्हें औसतन सिर्फ 49.34 दिन ही काम मिला, जो राष्ट्रीय औसत से भी कम है।
भ्रष्टाचार का आरोप, मनरेगा का नाम बदलने पर सरकार को घेरा
उमंग सिंघार ने आरोप लगाया कि मध्यप्रदेश में बीजेपी सरकार के कार्यकाल में मनरेगा में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। उन्होंने कहा कि 2022 से 2024 के बीच 44.64 लाख मजदूरों के नाम सूची से हटाए गए। उन्होंने कहा कि कोविड के दौरान जहां एक करोड़ मजदूर पंजीकृत थे, आज उनकी संख्या घटकर 52 लाख रह गई है। कांग्रेस नेता ने कहा कि एक तरफ मनरेगा से मजदूरों के नाम काटे जा रहे हैं, वहीं प्रदेश में असंगठित श्रमिकों की संख्या बढ़कर 1.91 करोड़ हो गई है और यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि पहले मनरेगा स्कीम में वेतन भुगतान की पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर थी, लेकिन अब इसे 60:40 अनुपात में बांटा जाएगा जिस कारण चालीस फीसदी खर्च राज्य सरकारों को वहन करना पड़ेगा। उमंग पसिंघार ने सवाल किया है कि पहले ही प्रदेश के मनरेगा मजदूरों की करोड़ों की देनदारी केंद्र पर बाकी है, ऐसे में इसके नए प्रारूप को प्रदेश में किस तरह लागू किया जा सकेगा।





