Sun, Dec 28, 2025

सेवा, दृढ़ता व राष्‍ट्रीयता के प्रतीक थे डॉ. शंकर दयाल शर्मा, सुरेश पचौरी ने पुण्यतिथि पर दी श्रद्धांजलि

Written by:Shruty Kushwaha
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डॉ. शर्मा का पूरा जीवन, राष्ट्र और राष्ट्रीयता एवं उनमें समाहित मूल्यों से ओतप्रोत रहा है। वे भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्ति रहे हैं। उनके जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आये, पर उन्होंने सिद्धांतों को कभी नहीं छोड़ा। वे स्तरहीन, व्यक्तिगत राग-द्वेष की राजनीति एवं आलोचना-प्रत्यालोचना के प्रपंच से परे रहे।
सेवा, दृढ़ता व राष्‍ट्रीयता के प्रतीक थे डॉ. शंकर दयाल शर्मा, सुरेश पचौरी ने पुण्यतिथि पर दी श्रद्धांजलि

File Photo

देश के 9वें राष्‍ट्रपति‍ रहे डॉ. शंकर दयाल शर्मा की 26  दिसंबर को पुण्‍यतिथि है। जब हम उनकी पुण्‍यति‍थि पर उन्‍हें याद करते हैं, तो हम एक ऐसे व्‍यक्त्तिव के योगदान को नमन करते हैं, जिन्‍होंने अपने पूरे जीवन में सिद्धांतों, राष्‍ट्र-सेवा और संवैधानिक नैतिकता के उच्‍च मानकों को बनाए रखा। उनका जन्‍म 19 अगस्त 1918 को भोपाल में हुआ व देहावसान 26  दिसंबर 1999 को दिल्‍ली में हुआ था।
अपने सुदीर्घ सार्वजनिक जीवन में मानवीय मूल्यों के जो मान और प्रतिमान डॉ. शर्मा ने ‘प्रतिपादित किए, वे अनुकरणीय, प्रेरक और वंदनीय हैं। अपनी प्रतिभा, लगन, कर्मठता, निष्ठा और व्यक्तिगत जीवन में साफ-सुथरी छवि के साथ उन्होंने भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश के शिक्षामंत्री, भोपाल के सांसद, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, केन्द्रीय संचारमंत्री, आंध्रप्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र के राज्यपाल, भारत के उपराष्ट्रपति तथा राष्ट्रपति के सर्वोच्च पदों को सुशोभित किया। डॉ. शर्मा जिस पद पर भी रहे, उन्होंने अपनी कार्यकुशलता की अमिट छाप छोड़ी।

डॉ. शंकर दयाल शर्मा: जन-जन के चहेते नायक

डॉ. शंकर दयाल शर्मा अपने तपोनिष्ठ जीवन और निरभिमानी व्यक्तित्व के सदगुणों से जन-जन के चहेते बने। वे भारतीय संस्कृति पुरुष ही नहीं, बल्कि गंगा-जमुनी तहजीब के ऐसे प्रतिनिधि रहे हैं, जिनमें आरती और अजान के संयुक्त भाव विद्यमान थे। वे ज्ञानार्जन के लिए हर पल उत्सुक ज्ञानयोगी थे और राजयोगी भी थे। वे गुणी थे और गुणग्राहक भी थे। वे संविधान के अध्येता थे और उसके अनुरक्षक भी थे।
डॉ. शंकर दयाल शर्मा कुशल शिक्षाशास्त्री थे। उन्‍होंने एम.ए. (हिंदी, संस्कृत एवं अंग्रेजी), उर्दू के आलिम फाजिल, एल.एल.एम., बार.एट.लॉ, डिप्लोमा इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (लंदन), एफआर.एस. (लंदन) एवं पी.एच.डी. (केम्ब्रिज) की शिक्षा अर्जित की। साथ ही उनके द्वारा बानडिन फेलोशिप ऑफ फारवर्ड स्कूल (अमेरिका) कानून में लिखी कई थीसिस आज भी मौलिक मानी जाती हैं। उन्होंने केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में कानून भी पढ़ाया। वे लखनऊ विश्वविद्यालय में कानून के प्राध्यापक रहे हैं।

दृढ़ संकल्प, विद्वत्ता, संघर्षशीलता और कर्मठता का संगम

सन् 1949 में भोपाल रियासत के भारतीय संघ में विलीनीकरण आंदोलन की भागीदारी से लेकर 1992 में भारत के राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक की डॉ. शंकर दयाल शर्मा की यात्रा कथा पड़ाव-दर-पड़ाव, विविध अनुभवों से गुजरते चले जाने की एक ऐसी कहानी है जिसमें उनकी लगन, दृढ़ संकल्प, विद्वत्ता, संघर्षशीलता और कर्मठता का पग-पग पर परिचय मिलता है।
डॉ. शंकर दयाल शर्मा सन् 1952 से 1956 तक भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री रहे। उन्हें आधुनिक भोपाल के निर्माता के रूप में सदा याद किया जाएगा। भोपाल के सर्वांगीण विकास में डॉ. शर्मा का अविस्मरणीय योगदान रहा है। डॉ. शर्मा की सूझबूझ भरी कोशिशों से भोपाल, मध्यप्रदेश की राजधानी बना। भोपाल में बीएचईएल का कारखाना लाने का श्रेय भी डॉ. शंकर दयाल शर्मा को है। इनके अलावा डॉ. शर्मा के अनवरत प्रयासों से भोपाल में गांधी मेडिकल कालेज, हमीदिया कालेज, रीजनल कालेज, मौलाना आजाद इंजीनियरिंग कालेज जो अब मेनिट कहलाता है, जैसे बड़े शिक्षण संस्थान स्थापित हुए। डॉ. शंकर दयाल शर्मा के विशेष प्रयासों से भोपाल में ‘ज्यूडिशल एकेडमी’ बनी, जो पूरे देश में ज्यूडीशियरी के प्रशिक्षण को अनूठा संस्थान है।

राष्ट्रीयता के मूल्यों को समर्पित जीवन

डॉ. शर्मा का पूरा जीवन, राष्ट्र और राष्ट्रीयता एवं उनमें समाहित मूल्यों से ओतप्रोत रहा है। वे भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्ति रहे हैं। उनके जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आये, पर उन्होंने सिद्धांतों को कभी नहीं छोड़ा। डॉ. शर्मा स्तरहीन, व्यक्तिगत राग-द्वेष की राजनीति एवं आलोचना-प्रत्यालोचना के प्रपंच से परे रहे। उनमें समय को पहचानने और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी। अपनों से अपनो के लिए लाभ नहीं लेना और विरोधियों को भी अपमानित नहीं करना, उनकी कार्यशैली रही है। डॉ. शंकर दयाल शर्मा सन् 1987 में सर्वसम्मति से भारत के उपराष्ट्रपति बने।
जुलाई  1992 में डॉ शर्मा भारत के राष्ट्रपति बने। राष्‍ट्रपति के रूप में वे कई प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल के साक्षी बने। राष्ट्रपति बनने के बाद प्रथम बार जब वे भोपाल पहुँचे तो उन्होंने अपने सम्मान में आयोजित अभिनंदन समारोह में बहुत ही भावुकता से मंतव्य प्रकट किया कि ‘महान राष्ट्रपति कहलाने की मेरी चाह नहीं है। मैं तो बस यही चाहता हूँ कि चदरिया जस की तस रख सकूँ।’ डॉ. शर्मा का सार्वजनिक जीवन निष्‍कलंक रहा है। भोपाल की माटी के इस महान सपूत ने अपनी प्रखर बौद्धिक प्रतिभा और अध्यवसाय के सहारे अपने जीवन में जो कीर्ति कलश स्थापित किए, उन पर देश को गर्व है।
उनकी पुण्‍यतिथि पर विनम्र नमन।
(लेखक भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री हैं)
Dr Shankar Dayal Sharma