अहमदाबाद में 89 वर्षीय गुस्ताद बोरजोरजी इंजीनियर की वसीयत से जुड़ा मामला करीब एक दशक तक कानूनी दांव-पेच में उलझा रहा, लेकिन अब इसका अंत हो गया है। फरवरी 2014 में गुस्ताद का निधन हुआ था। मरने से पहले उन्होंने अपनी संपत्ति का ब्योरा लिखित वसीयत में दर्ज किया था। जब यह वसीयत खोली गई तो सभी हैरान रह गए—गुस्ताद ने अपना शाहिबाग स्थित 159 वर्ग गज का फ्लैट अपनी केयरटेकर महिला की पोती अमीषा मकवाना के नाम कर दिया था, जो उनकी कोई रिश्तेदार नहीं थी। अहमदाबाद की सिविल कोर्ट ने पिछले हफ्ते इस वसीयत को मंजूरी दे दी और फ्लैट का स्वामित्व अमीषा के नाम कर दिया।
गुजरात में अनोखा मामला
गुस्ताद, जो टाटा इंडस्ट्रीज में कार्यरत थे, का कोई कानूनी वारिस नहीं था। उनकी पत्नी का निधन 2001 में हो गया था और उनकी संतान नहीं थी। गुस्ताद के घर में एक कुक काम करती थी, जिसकी पोती अमीषा अपनी दादी के साथ वहां आती-जाती थी। तब अमीषा की उम्र महज 13 साल थी और वह गुस्ताद को अंकल कहकर पुकारती थी। समय के साथ दोनों के बीच गहरा लगाव बन गया और गुस्ताद उसे अपनी बेटी की तरह मानने लगे। उन्होंने अमीषा की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया, जिसमें स्कूल फीस, ड्रेस और किताबें शामिल थीं।
22 फरवरी 2014 को, अपने निधन से लगभग एक माह पहले, गुस्ताद ने दो गवाहों के सामने वसीयत तैयार की और उसे नोटरी करवाया। चूंकि अमीषा उस समय नाबालिग थी, गुस्ताद ने अपने भतीजे बहराम इंजीनियर को वसीयत का एग्जीक्यूटर और अमीषा का कानूनी अभिभावक बनाया। गुस्ताद के निधन के बाद बहराम ने अमीषा की देखरेख की, जब तक कि वह बालिग नहीं हो गई। 2023 में अमीषा ने अपने वकील के जरिए कोर्ट में वसीयत की मंजूरी के लिए याचिका दाखिल की और बताया कि वह गुस्ताद की मृत्यु तक उनकी देखभाल करती रहीं।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पब्लिक नोटिस जारी किया और आपत्तियां मांगीं, लेकिन किसी ने विरोध नहीं किया। गुस्ताद के भतीजे ने भी अमीषा के पक्ष में अनापत्ति प्रमाण पत्र दे दिया। इसके बाद 2 अगस्त को सिविल कोर्ट ने वसीयत को मान्यता दी और अमीषा को उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी कर दिया। इस फैसले के साथ, करीब 10 साल पुराने इस विवाद का पटाक्षेप हो गया।
अमीषा अब एक निजी कंपनी में एचआर के पद पर कार्यरत हैं। वह गुस्ताद के साथ अपने रिश्ते को बेहद खास मानती हैं। उन्होंने बताया कि गुस्ताद उन्हें गोद लेना चाहते थे, लेकिन उन्होंने उनकी भलाई के लिए ऐसा नहीं किया, क्योंकि वे पारसी थे और नहीं चाहते थे कि अमीषा का धर्म या पहचान बदले। अमीषा ने कहा कि गुस्ताद उनके लिए मां और पिता दोनों थे और उन्होंने 13 साल की उम्र तक उन्हें अथाह प्यार दिया।





