डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह एक बार फिर जेल से बाहर हैं। हरियाणा की रोहतक स्थित सुनारिया जेल में सजा काट रहे राम रहीम को इस बार 40 दिन की पैरोल मिली है। पिछले चार साल में यह 14वीं बार है जब राम रहीम को फरलो या पैरोल दी गई है। इस बार वह भारी पुलिस सुरक्षा के बीच सिरसा डेरे के लिए रवाना हुआ।
इतिहास दोहराता हुआ पैरोल
राम रहीम को इससे पहले भी कई मौकों पर चुनावों से ठीक पहले पैरोल दी गई। अक्टूबर 2024 में हरियाणा चुनावों से चार दिन पहले उसे 30 दिन की पैरोल दी गई थी। 9 अप्रैल 2025 को उसे 21 दिन की पैरोल मिली थी, और 29 अप्रैल को डेरे के स्थापना दिवस से 20 दिन पहले ही वह बाहर आ गया था। कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राम रहीम के अनुयायियों की बड़ी संख्या और वोटिंग क्षमता के चलते राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा है। खासकर हरियाणा और पंजाब की राजनीति में डेरा का प्रभाव असंदिग्ध माना जाता है।
क्यों सजा काट रहा है राम रहीम?
गुरमीत राम रहीम को अगस्त 2017 में दो साध्वियों के यौन शोषण मामले में दोषी ठहराया गया था। 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी।
फिर जनवरी 2019 में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्याकांड में भी उसे आजीवन कारावास की सजा मिली। दोनों ही मामलों की सुनवाई सीबीआई की विशेष अदालत ने की थी। राम रहीम फिलहाल चंडीगढ़ से 250 किमी दूर, रोहतक की हाई-सिक्योरिटी सुनारिया जेल में सजा काट रहा है। हाल ही में हाईकोर्ट ने उसकी अपनी दत्तक बेटियों की शादी में शामिल होने की याचिका को खारिज कर दिया था।
पैरोल नियम और विवाद
भारत में पैरोल नियम यह कहते हैं कि कोई भी कैदी, अच्छे आचरण और विशेष परिस्थितियों में, सीमित समय के लिए जेल से बाहर आ सकता है। लेकिन राम रहीम को बार-बार मिली पैरोल पर कई सवाल खड़े होते हैं कि क्या यह विशेषाधिकार सिर्फ प्रभावशाली लोगों को ही मिलता है?
, क्या आम कैदी को इतनी बार पैरोल मिलती है?, क्या चुनावों के दौरान मिली पैरोल संयोग है या रणनीति?, कानून विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसी कैदी को बार-बार पैरोल दी जाती है, तो इससे न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है।
सियासत में संतों की भूमिका?
राम रहीम लंबे समय से पंजाब और हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य में प्रभावशाली चेहरा रहा है। राजनीतिक दलों पर आरोप लगते रहे हैं कि वे डेरा के वोट बैंक को लुभाने के लिए समझौते करते हैं। 2007, 2012, 2017 और 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में डेरा समर्थकों की भूमिका साफ देखी गई थी। विशेषज्ञ कहते हैं कि जब धार्मिक और राजनीतिक हित आपस में जुड़ते हैं, तब फैसले पारदर्शिता की कसौटी पर कम ही खरे उतरते हैं।
क्या कहती है जनता?
सोशल मीडिया पर कई लोग राम रहीम की बार-बार पैरोल पर नाराजगी जताते हैं। “क्या पैरोल अब राजनीतिक इनाम बन गया है?” “आम आदमी को क्या कभी इतनी रियायत मिलती है?” “यह फैसला पीड़ितों के साथ अन्याय नहीं?” ऐसे सवाल सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ डिबेट्स तक लगातार उठ रहे हैं। गुरमीत राम रहीम का बार-बार पैरोल पर आना भारत की पैरोल प्रणाली और न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। यह ज़रूरी है कि कानून सभी के लिए बराबर हो, चाहे वह आम नागरिक हो या प्रभावशाली व्यक्तित्व। यदि पैरोल को राजनीतिक और व्यक्तिगत लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो इससे लोकतंत्र और न्याय की नींव कमजोर होती है।





