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Thu, Dec 18, 2025

सतपुड़ा में है औषधीय वनस्पतियों का भंडार, सही उपयोग से हो सकता है बेहद लाभ

Written by:Shruty Kushwaha
Published:
सतपुड़ा में है औषधीय वनस्पतियों का भंडार, सही उपयोग से हो सकता है बेहद लाभ

होशंगाबाद, राहुल अग्रवाल। सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला से बह रही नर्मदा अपने सहयोगी जंगलों के जरिए मौजूदा दौर में बेरोजगारी दूर करने और इकोनॉमी को फिर मजबूत करने में कारगर साबित हो सकती है। इसके लिए आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल करना होगा जिन्हें वनाेपज और औषधीय वनस्पतियाें के उपयाेग की जानकारी है।

अभी तक वनाेपज और औषधीय वनस्पतियां जैसे सफेद मूसली, औषधीय कंद जिनका दवाइयां बनाने में उपयाेग किया जाता है, बिना जानकारी के ही निर्यात कर दी जाती हैं और इसका अधिक आर्थिक लाभ नहीं मिल पाता है। यदि वनाेपज और औषधीय वनस्पति की प्राेसेसिंग कर इसका मेडिसिनल उपयाेग किया जाए ताे बेहतर बाजार उपलब्ध हाेने से आजीविका और राेजगार के अवसराें काे बढ़ाया जा सकता है। दो दशक पहले सरकार की तालाब, सिंचाई, वनमित्र याेजनाओं सेे प्रयास किए गए लेकिन अभी उनके पर्याप्त परिणाम नहीं मिल सके हैं। वनवासियाें के औषधीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण करने से वनाेपज और औषधीय वनस्पति काे आजीविका का जरिया बनाया जा सकता है।

सतपुड़ा के क्षेत्र में तवा, जोहिला, देनवा, बाणगंगा, विहान नदियां हैं। मध्य प्रदेश का उच्चतम बिंदु धूपगढ़ है जो भूगर्भीय चट्टान और मिट्टी से बना है। पचमढ़ी-धूपगढ़ की इन ऊंची पहाड़ियाें पर साल और सागौन के जंगल हैं। मंडला, छिंदवाड़ा, सिवनी, होशंगाबाद, बैतूल, शहडोल, जबलपुर, खंडवा और खरगोन में साल और सागाैन बड़ी मात्रा में है। नर्मदा के तट क्षेत्र में तीन प्रकार के जंगल हैं। नर्मदा के वन क्षेत्राें की वनाेपज में अंजन, महुआ, सगुन, आम, जामुन, निम्बू, बांस, नारंगी, हरसिंगार, अमलतास, बाबुल, नीम, पीपल फाइकस प्रमुख हैं। नर्मदा के औषधीय वनाें में अश्वगंधा, सतावर, गुरमार, कलिहारी, तुलसी, काली मूसली, हर्रा, जंगली प्याज, अर्जुन, बच, पाटल कुम्हड़ा, केयूकेन्ड, भुई-आंवला, राम दातुन, कालमेघ जैसे दुर्लभ औषधीय प्रजातियाें की वनस्पति प्रमुख है।

नर्मदा और वनवासी
मध्यप्रदेश में नर्मदा की भाैगाेलिक स्थिति में मुख्यत: पांच जनजातीय क्षेत्र हैं। इसमें बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी बुधनी, रायसेन (बरेली), होशंगाबाद, हरदा, डिंडोरी, मंडला, नरसिंहपुर, बालाघाट में गाेंड प्रजाति पाई जाती है। जबलपुर, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, हरदा जिलाें में कोरकू, बैतूल में बैगा और छिंदवाड़ा पातालकाेट भारिया जनजातियां पाई जाती हैं।