सिख धर्म के लोगों के बीच गुरु गोविंद सिंह की जयंती का खास महत्व है। वह सिखों के दसवें गुरु थे जिन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी। हर साल उनकी जयंती देश भर में धूमधाम के साथ मनाई जाती है। खालसा पंथ की रक्षा के लिए उन्होंने मुगलों 10 से 14 बार युद्ध किया। उन्होंने लोगों को अन्याय के खिलाफ लड़ना और सच के साथ खड़े होना सिखाया। हर जयंती पर समाज के लिए उनके योगदान और बलिदान को याद किया जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। इस बार उनकी जयंती 27 दिसंबर 2025 यानी आज मनाई जा रही है। चलिए हम आपको उनके जीवन के संघर्ष और कुछ प्रमुख वचन और उपदेश बताते हैं।
सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी
गुरु गोबिंद सिंह सिखों के 10वें गुरु हुए। उनकी जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में पहचाना जाता है। 22 दिसंबर 1666 में नौवें सिख गुरु तेग बहादुर और माता माता गुजरी कौर के घर पटना में उनका जन्म हुआ था। बचपन में उनका नाम गोबिंद राय था।
गोबिंद राय से बने गोबिंद सिंह
1699 में गुरु गोबिंद ने बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने पांच व्यक्तियों को अमृत चख कर पंच प्यारे बनाया। इसमें सभी वर्गों के लोग थे। उन्होंने खुद भी अमृत चखा और गोबिंद राय से गोबिंद सिंह बन हुए। सभी वर्गों के लोगों को शामिल करने के पीछे उनका उद्देश्य जात पात के अंतर को मिटाना था।
कुर्बान किए 4 बेटे
गुरु हमेशा अपने धर्म की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहे। उनके साहस के आगे औरंगजेब की सेना भी कांप उठी थी। धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपने चार पुत्र अजीत सिंह, जुजहार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह को भी कुर्बान कर दिया। अपने जीवन में उन्होंने 10-14 युद्ध किए और पहाड़ी राजाओं सहित मुगल सूबेदारों को हर बार धूल चटाई।
गुरु गोबिंद सिंह जी के उपदेश
“वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह”
यह खालसा वाणी गुरु गोबिंद ने उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ लड़ाई के लिए स्थापित की थी।
“मानस की जात सबै एकै पहचानबो”
इसका अर्थ है हर मानव जाति को एक ही पहचानो। मनुष्य की सभी जाति एक ही है सबको समान मानो।
“साच कहों सुन लेह सभी, जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभ पायो”
इस कथन का मतलब है सच कहता हूं सब सुन लो, जिसने प्रेम किया है, उसने ही प्रभु को पाया है।
“सवा लाख ते एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गोविंद सिंह नाम कहाऊं”
आज भी लोगों की रगों में जोश भरने वाली ये पंक्तियां उन सिख वीरों को नमन करती है, जिन्होंने अपने सिर कटवा लिए लेकिन विदेशी आक्रांताओं के सामने घुटने नहीं टेके।
“चूं कार अज हमह हिलते दर गुजश्त, हलाल अस्त बुरदन ब शमशीर दस्त”
इस उपदेश का अर्थ है जब शांति से किए गए उपाय विफल हो जाएं तो न्याय के लिए तलवार उठाना जरूरी है।





