मध्यप्रदेश में गौ सेवा को लेकर सरकार बड़े-बड़े दावे करती है। मंचों से भाषण होते हैं, योजनाओं की सूची गिनाई जाती है और कहा जाता है कि गौवंश की सुरक्षा सरकार की पहली प्राथमिकता है। लेकिन जब उन्हीं दावों पर सरकार के मंत्री सवाल उठाने लगें, तो मामला गंभीर हो जाता है।
गौशालाओं की हालत को लेकर अब विपक्ष नहीं, बल्कि सत्ता पक्ष के मंत्री ही आमने-सामने हैं। पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल के “सफेद हाथी” वाले बयान ने पूरे प्रदेश में बहस छेड़ दी है। सवाल साफ है क्या एमपी की गौशालाएं सच में गौ सेवा का केंद्र हैं या सरकारी लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण?
एमपी की गौशालाओं की जमीनी हकीकत
मध्यप्रदेश में हजारों गौशालाएं बनाई गई हैं। इनका मकसद था सड़कों पर घूम रहे बेसहारा मवेशियों को सुरक्षित जगह देना, उन्हें चारा-पानी उपलब्ध कराना और किसानों को नुकसान से बचाना। लेकिन हकीकत इससे काफी अलग नजर आती है।
प्रदेश के कई जिलों से लगातार खबरें आती रही हैं कि गौशालाओं में न तो पर्याप्त चारा है, न साफ पानी और न ही पशु चिकित्सकीय सुविधाएं। कहीं भवन बने हैं लेकिन वहां बिजली नहीं, कहीं पानी की व्यवस्था नहीं, तो कहीं सड़क तक नहीं पहुंचती। कई जगह गौशालाएं सिर्फ कागजों में चल रही हैं।
प्रहलाद पटेल का बयान
पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल ने सार्वजनिक मंच से यह कहकर बड़ा बयान दे दिया कि प्रदेश की कई गौशालाएं सफेद हाथी साबित हो रही हैं। उन्होंने साफ कहा कि प्रदेश में करीब एक हजार ऐसे गौशाला भवन हैं, जहां सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं तक मौजूद नहीं हैं। उनके मुताबिक, सरकार अब ऐसे भवनों और गौशालाओं को निजी संस्थाओं को सौंप रही है। अब तक करीब 400 गौशालाएं निजी संस्थाओं को दी जा चुकी हैं।
पशुपालन मंत्री लखन पटेल की प्रतिक्रिया
पंचायत मंत्री के बयान पर पशुपालन मंत्री लखन पटेल ने पलटवार किया। उन्होंने कहा कि जिन गौशालाओं की बात की जा रही है, वे पंचायत विभाग के अंतर्गत बनाई गई थीं। यानी उन्होंने जिम्मेदारी अपने मंत्रालय से हटाकर दूसरे विभाग पर डाल दी। हालांकि, पशुपालन मंत्री ने यह भी माना कि कई जगह अव्यवस्थाएं हैं और उन्हें दूर करने का काम किया जा रहा है।
2003 से अब तक की सच्चाई क्या कहती है?
मध्यप्रदेश में 2003 से लगभग 21 सालों तक भाजपा की सरकार रही है, बीच में सिर्फ डेढ़ साल कमलनाथ सरकार रही। ऐसे में अगर गौशालाएं खराब हालत में हैं, तो सिर्फ कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराना कितना सही है? अगर कांग्रेस के समय भी बड़ी संख्या में गौशालाएं बनी थीं, तो इसका मतलब यह भी है कि गौवंश संरक्षण में कांग्रेस का भी योगदान रहा। और यदि वे आज बदहाल हैं, तो मौजूदा सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें सुधारे।
गौशालाओं की बदहाली का असर आम जनता पर
गौशालाओं की खराब हालत का सीधा असर किसानों और आम लोगों पर पड़ता है। बेसहारा मवेशी सड़कों पर घूमते हैं, हादसे होते हैं, फसलें खराब होती हैं और ट्रैफिक जाम जैसी समस्याएं बढ़ती हैं। अगर गौशालाएं सही तरीके से चलें, तो ये समस्याएं काफी हद तक कम हो सकती हैं। लेकिन जब व्यवस्था ही कमजोर हो, तो गौवंश भी सुरक्षित नहीं रहता और जनता भी परेशान होती है।





