भारत में मंदिरों की कोई कमी नहीं है। यहां एक से बढ़कर एक भगवानों की प्रतिमाएं स्थापित हैं, कुछ लोग भगवान शिव के भक्त हैं तो कुछ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। कुछ गजानन को अपना आदर्श मानते हैं तो कुछ मां देवी को पूजते हैं। कुछ लोग हनुमान के भक्त होते हैं तो कुछ मां काली को अपना रक्षक मानते हैं। देश के हर कोने में मौजूद मंदिरों का अपना अलग रहस्य, अपनी अलग खासियत, उनकी अलग पौराणिक कथाएं और रहस्य शामिल हैं। यहां आकर आपको ऐसा लगेगा कि आप पूरी दुनिया की भीड़ से हटकर एक शांतिपूर्ण जगह पर पहुंच चुके हैं, जहां आपको किसी चीज का कोई खतरा नहीं है। यहां स्वयं भगवान आपकी रक्षा करते हैं, क्योंकि भगवान के दरबार पर लोग शांति पाने के लिए ही जाते हैं। यह एक ऐसा धार्मिक स्थल होता है, जहां इंसान सभी तरह की मोह माया से कुछ ही क्षण के लिए सही पर दूर हो जाता है। ईश्वर की भक्ति में लीन श्रद्धालु अपनी सारी दुख और पीड़ा भगवान को बताते हैं और अपना मन हल्का करते हैं।
आज हम आपको पश्चिम बंगाल में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां का इतिहास हजारों साल पुराना है। यहां सालों भर श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। वहीं, वीकेंड्स और खास त्योहारों पर यहां पांव रखने के लिए भी जगह नहीं होती।
कल्याणेश्वरी मंदिर
स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि जहां एक ओर दुनिया ठोकर मार देती है, तो वहीं दूसरी ओर मां अपने बच्चों को गले से लगा लेती है। इस मंदिर का नाम कल्याणेश्वरी मंदिर है, जो कि पश्चिम बंगाल के अंतिम छोर और झारखंड की सीमा पर स्थित है। छोटी सी गुफा में मौजूद मां की मूर्ति सालों भर पूजी जाती है। यह एक ऐसी जगह है, जहां हर टूटी उम्मीद फिर से जीवित होती है। यहां मां का हर सवाल सीधे मां के दरबार तक जाता है।
महसूस होता है प्यार
इस दरबार में मां के प्यार को महसूस किया जा सकता है। उनके प्यार को ना ही तौला जा सकता है और ना ही किसी और जगह से खरीदा जा सकता है, बल्कि उनका आशीर्वाद हमेशा उनके भक्तों पर बना रहता है। कोई इस मंदिर में काम के लिए आता है, तो कोई अपने बच्चों के लिए आता है। किसी को सुकून चाहिए, तो कोई यहां पर मां की भक्ति में लीन होने के लिए आता है। स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि यहां पर दिल से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यहां आने वाला कोई भी श्रद्धालु कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता। देश भर के लोग यहां मन्नत पूरी होने पर दोबारा मां के दरबार में आते हैं।
इतिहास
मंदिर के इतिहास की बात करें तो यह 12वीं शताब्दी में बनाया गया था, जिसे राजा चंद्रकेतु ने बनवाया था। इस मंदिर का निर्माण बंगाली वास्तुकला शैली जैसी है। मंदिर के अंदर मुद्रा अवस्था में देवी कल्याणी ईश्वरी की मूर्ति स्थापित है, जिसके चारों ओर देवी दुर्गा, माता लक्ष्मी, भगवान शिव, गणेश और विष्णु जैसे अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं। मंदिर के गर्भगृह में मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
यह पूरा मंदिर एक ही पत्थर से बनाया गया है, जो कि इसकी खासियत है। मंदिर की दीवार और छत के बीच कोई भी जोड़ नहीं दिखता है। मंदिर प्रांगण में नीम का पेड़ है, जहां पूजा के बाद लोग पत्थर बांधते हैं। यह परंपरा सदियों से निभाई चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि मुराद पूरी होते ही बंधा हुआ पत्थर खुद ही गिर जाता है।
गुरुवार को नहीं होती पूजा
बता दें कि इस मंदिर में गुरुवार को पूजा नहीं की जाती। मंगलवार और शनिवार के दिन यहां विशेष पूजन का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा, साल में दो बार मकर संक्रांति और पहली मांग पर विशिष्ट पूजन का अनुष्ठान किया जाता है। इस दौरान यहां मेला भी लगता है।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)





