उत्तर प्रदेश में विकास परियोजनाओं के शिलालेख (Foundation Stones) को लेकर मचा घमासान थम नहीं रहा है। अफसरों और नेताओं के नाम पहले किस फॉन्ट में और किस क्रम में लिखे जाएं, इसे लेकर लगातार विवाद होते रहे हैं। अब सरकार ने इस पर अंतिम मुहर लगा दी है।
नगर विकास विभाग ने शिलालेखों पर अफसरों के नाम लिखवाने पर पूरी तरह रोक लगा दी है। यानी अब कोई नगर आयुक्त या अधिशासी अधिकारी अपना नाम पत्थर पर खुद नहीं छपवा सकेगा। वहीं विधायक, मेयर और चेयरमैन के नाम एक ही फॉन्ट साइज में लिखे जाएंगे, ताकि कोई ‘बड़ा’ और कोई ‘छोटा’ न दिखे।
क्या कहा गया है नए शासनादेश में?
- नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव अमृत अभिजात ने इस बाबत शासनादेश जारी किया है। इसमें साफ-साफ कहा गया है कि
- मुख्यमंत्री, नगर विकास मंत्री और स्थानीय विधायक का नाम शिलालेख पर अनिवार्य रूप से लिखा जाएगा।
- इनके बाद मेयर या नगर पालिका अध्यक्ष का नाम लिखा जाएगा।
- विधायक और मेयर/अध्यक्ष का नाम एक ही फॉन्ट साइज में होना चाहिए। किसी को बड़ा या छोटा दिखाने की इजाजत नहीं है।
- किसी भी अधिकारी का नाम शिलालेख पर नहीं लिखा जाएगा। चाहे वह नगर आयुक्त हो या अधिशासी अधिकारी।
- योजनाओं के शिलान्यास या लोकार्पण के दौरान जनप्रतिनिधियों का पूरा प्रोटोकॉल फॉलो किया जाए।
निमंत्रण पत्र भेजना अनिवार्य होगा।
जब किसी योजना के लिए किस्त मांगी जाए या काम पूरा होने का सर्टिफिकेट भेजा जाए, तो शिलालेख की फोटो भी अनिवार्य रूप से भेजनी होगी।
क्यों लिया गया ये फैसला?
शासन की जानकारी में आया था कि पहले भी कई बार दिशा-निर्देश जारी किए गए, लेकिन ज्यादातर निकायों ने इसका पालन नहीं किया। कोई किसी ‘माननीय’ का नाम बड़ा लिखवा देता था, तो कोई अफसर चुपचाप खुद को भी शिलालेख पर जोड़ लेता था। इससे विवाद पैदा होते थे। अब नगर विकास विभाग ने साफ कर दिया है कि सिर्फ चुने हुए जनप्रतिनिधियों को ही शिलालेख पर जगह मिलेगी। वो भी एक समान दर्जे में।





