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Wed, Dec 17, 2025

Success Story: सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी थे खुदीराम बोस, इस वजह से दी गई थी फांसी

Written by:Sanjucta Pandit
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उन्होंने 9वीं कक्षा में पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। बंगाल के 1905 में विभाजन के बाद खुदीराम बोस ने अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत सत्येंद्रनाथ बोस के नेतृत्व में की।
Success Story: सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी थे खुदीराम बोस, इस वजह से दी गई थी फांसी

Success Story : शहीद खुदीराम बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म 3 दिसंबर, 1889 को बंगाल प्रेसीडेंसी के हबीबपुर गांव में हुआ था। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही ब्रिटिश राज का विरोध करने का संकल्प लिया था। खुदीराम बोस ने कई क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण मुज़फ़्फ़रपुर षडयंत्र था। आइए पढ़ते हैं सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी खुदीराम बोस की कहानी…

9वीं में छोड़ी पढ़ाई

खुदीराम बोस के माता-पिता की मृत्यु के बाद उनकी बड़ी बहन ने उनका पालन-पोषण किया। छोटी उम्र में ही देश को आजाद कराने का जुनून उनके दिल में घर कर गया, जिसके कारण उन्होंने 9वीं कक्षा में पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। बंगाल के 1905 में विभाजन के बाद खुदीराम बोस ने अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत सत्येंद्रनाथ बोस के नेतृत्व में की। उन्होंने रिवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य के रूप में वंदेमातरम् के पर्चे बांटने जैसे क्रांतिकारी कार्य किए। पहली बार उन्हें 28 फरवरी 1906 को गिरफ्तार किया गया, लेकिन वह कैद से भागने में कामयाब हो गए। दो महीने बाद उन्हें फिर से पकड़ लिया गया, लेकिन 16 मई 1906 को उन्हें चेतावनी देकर जेल से रिहा कर दिया गया।

मुज़फ़्फ़रपुर षडयंत्र

मुज़फ़्फ़रपुर षडयंत्र के दौरान, खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने 30 अप्रैल 1908 को एक ब्रिटिश जज डगलस किंग्सफोर्ड की हत्या का प्रयास किया। हालांकि, उनकी कोशिश असफल रही और इस घटना में दो महिलाएं मारी गईं। गिरफ्तारी से बचने के लिए प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली, जबकि खुदीराम बोस पकड़े गए। खुदीराम बोस की फांसी की सजा सुनाए जाने के समय उनकी साहसिकता और आत्मविश्वास ने सबको चकित कर दिया। जब जज कॉर्नडॉफ ने अदालत में उनसे पूछा कि क्या वे फांसी की सजा का मतलब समझते हैं, तो खुदीराम ने निर्भीकता से जवाब दिया कि वे न केवल फांसी की सजा का मतलब समझते हैं, बल्कि उनके वकील द्वारा दी गई दलीलों को भी जानते हैं।

आज भी किया जाता है याद

खुदीराम ने कहा, “मेरे वकील साहब ने कहा है कि मैं अभी कम उम्र हूं और इस उम्र में बम नहीं बना सकता हूं। जज साहब मेरी आपसे गुजारिश है कि आप खुद मेरे साथ चलें। मैं आपको भी बम बनाना सिखा दूंगा।” इसके बाद अदालत ने खुदीराम को फांसी की सजा सुनाने के साथ-साथ अपील का मौका भी दिया। हालांकि, ऊपरी अदालतों ने मुज़फ़्फरपुर की अदालत के फैसले को कायम रखते हुए उनकी सजा पर मुहर लगा दी। जिसके बाद उन्हें 11 अगस्त 1908 को 18 वर्ष की आयु में फांसी दे दी गई। उनकी शहादत ने भारतीय युवाओं में क्रांतिकारी भावना को और अधिक प्रबल किया। उनके बलिदान को आज भी देशभर में श्रद्धा और सम्मान के साथ याद किया जाता है।