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Wed, Dec 17, 2025

बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा आदेश, दादी से लेकर पिता को सौंपा जाएगा 5 साल के बेटे की कस्टडी

Written by:Neha Sharma
Published:
एक पिता की अपने पांच साल के बेटे को वापस पाने की भावनात्मक लड़ाई आखिरकार रंग लाई है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने मालाड पुलिस को आदेश दिया है कि 74 वर्षीय दादी के पास रह रहे बच्चे को दो हफ्तों के भीतर उसके पिता को सौंपा जाए।
बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा आदेश, दादी से लेकर पिता को सौंपा जाएगा 5 साल के बेटे की कस्टडी

एक पिता की अपने पांच साल के बेटे को वापस पाने की भावनात्मक लड़ाई आखिरकार रंग लाई है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने मालाड पुलिस को आदेश दिया है कि 74 वर्षीय दादी के पास रह रहे बच्चे को दो हफ्तों के भीतर उसके पिता को सौंपा जाए। मामला जुड़वां भाइयों से जुड़ा है। दोनों का जन्म नवंबर 2019 में सरोगेसी से हुआ था। इनमें से एक बच्चा सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित है और अपने माता-पिता के साथ रहता है, जबकि दूसरा बच्चा अब तक दादी के पास रह रहा था। बच्चे की कस्टडी को लेकर पिता और दादी के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा था।

पिता ने अदालत में बताया कि शुरूआत में बच्चों में से एक की गंभीर बीमारी के चलते दूसरा बच्चा दादा-दादी को सौंपा गया था। लेकिन कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान हालात बिगड़े और दादी ने बच्चे को वापस देने से इनकार कर दिया। पिता का कहना है कि अब दोनों भाई एक-दूसरे के साथ रहने के हकदार हैं, खासकर बीमार बेटे को अपने भाई की जरूरत है। दूसरी ओर, दादी और उनकी तीन बेटियों का दावा है कि उन्होंने बच्चे के साथ भावनात्मक जुड़ाव बना लिया है और पिता संपत्ति हड़पने की नीयत से कस्टडी मांग रहे हैं। इतना ही नहीं, दादी ने अपने बेटे और बच्चे के पिता पर मारपीट, रोकने और परित्याग का FIR भी दर्ज कराया था।

बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा आदेश

जस्टिस रविंद्र घुगे और जस्टिस गौतम अंखड की खंडपीठ ने पिता की हेबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ कहा कि बायोलॉजिकल माता-पिता का अधिकार किसी भी रिश्तेदार के भावनात्मक दावे से ऊपर है। अदालत ने कहा कि माता-पिता आपसी विवादों से दूर, स्थिर जीवन जी रहे हैं और अपने बेटे की देखभाल करने में सक्षम हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि एक जुड़वां बेटा सेरेब्रल पाल्सी से जूझ रहा है, इसलिए उसके भाई का साथ उसके लिए बेहद जरूरी है। दादी की दलीलों को खारिज करते हुए कोर्ट ने दो टूक कहा कि केवल पारिवारिक विवाद या संपत्ति के झगड़ों के आधार पर बच्चे को माता-पिता से दूर नहीं रखा जा सकता।

सुनवाई के दौरान अदालत ने दादी को फटकार लगाते हुए कहा कि 74 साल की उम्र में वह अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग कर रही हैं, ऐसे में बच्चे की कस्टडी पर उनका कोई कानूनी अधिकार नहीं है। पिता की वकील रीना रोलैंड ने दलील दी कि बायोलॉजिकल माता-पिता के रूप में उनके मुवक्किल को बच्चे की कस्टडी मिलनी ही चाहिए। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे के कल्याण को नुकसान पहुंचाने का कोई सबूत पेश नहीं किया गया है। हाईकोर्ट ने पुलिस को स्पष्ट निर्देश दिया है कि बच्चे को सुरक्षित रूप से पिता की कस्टडी में सौंपा जाए।