अभ्युदय मध्य प्रदेश समिट ग्वालियर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के एक संबोधन ने उपस्थित लोगों को देर तक ताली बजाने के लिए मजबूर कर दिया। दरअसल भाषण के शुरू में ही लोगों को संबोधित करते हुए अमित शाह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को राजा साहब सिंधिया कहकर संबोधित किया और तालियां बज उठी। राजनीतिक समीक्षकों की माने तो शाह का सिंधिया के लिए संबोधन बीजेपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पद और कद के महत्व को बताता है।
“हर दिल पर नाम लिख दिया, माधवराव सिंधिया”
ग्वालियर चंबल संभाग की राजनीति में 30 साल तक यह नारा गूंजता था। वर्तमान केंद्रीय मंत्री ज्योतिदित्य सिंधिया के स्वर्गीय पिता केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया ने भारत की स्वतंत्रता के बाद रियासतों के विलीनीकरण और राजतंत्र की जगह लोकतंत्र की स्थापना के बाद भी जिस तरह लोगों के दिलों में जगह बनाई, वो लोगों के लिए हमेशा महाराज ही रहे।
उनकी असामयिक मृत्यु के बाद तत्कालीन युवराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कुशलता के साथ राजनीतिक नेतृत्व संभाला और आज भी ग्वालियर चंबल संभाग में ज्योतिदित्य सिंधिया को सम्मानजनक संबोधन महाराज के नाम से ही पुकारा जाता है।
लेकिन इन सब के बीच जब ग्वालियर में आयोजित अभ्युदय ग्रोथ समिति में केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने सिंधिया को राजा साहब सिंधिया कहकर संबोधित किया तो लोगों की तालियां रोकने का नाम नहीं ले रही थी।
हालांकि सिंधिया को बीजेपी में आए हुए अभी 5 साल ही हुए हैं लेकिन अपने कुशल नेतृत्व और कार्य क्षमता से उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार में एक अपनी अलग पहचान बना ली है। पहले नागरिक उड्डयन और अब संचार मंत्री के रूप में सिंधिया की कार्य क्षमता संदेह से परे है।
जो आलोचक सिंधिया के बीजेपी में आते समय यह कह रहे थे की पार्टी के कार्यकर्ता और नेता उन्हें झेल नहीं पाएंगे, सिंधिया ने अपनी विशिष्ट शैली से उन्हें भी मौन कर दिया।
आज बीजेपी की लगभग सभी नेताओं से सिंधिया के बेहतर संबंध हैं और कार्यकर्ता भी उनके मुरीद हो रहे हैं। सुख-दुख में कार्यकर्ताओं के साथ लगातार संपर्क रखने की ग्वालियर चंबल संभाग की अपनी विशिष्ट शैली को सिंधिया ने पूरे प्रदेश में विस्तारित कर दिया है।
ऐसे में शाह के इस संबोधन ने इस संदेश भी दिया है कि अब भाजपा की सियासत में सिंधिया रियासत काफी गहरी उतर गई है और उतरे भी क्यों ना आखिरकार ये भाजपा भी सिंधिया की दादी और ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया की अथक मेहनत, परिश्रम और संघर्षों के कारण आज एक वटवृक्ष का रूप ले पाई है।





