Wed, Dec 24, 2025

अरावली विवाद पर भूपेंद्र यादव का बयान, फैली अफवाहों का किया खंडन, कहा- उठाए जा रहे संरक्षण से जुड़े कई अहम कदम

Written by:Shyam Dwivedi
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केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने सरकार का पक्ष साफ शब्दों में रखा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीते वर्षों में ग्रीन अरावली मूवमेंट और अरावली के संरक्षण से जुड़े कई अहम कदम उठाए गए हैं।
अरावली विवाद पर भूपेंद्र यादव का बयान, फैली अफवाहों का किया खंडन, कहा- उठाए जा रहे संरक्षण से जुड़े कई अहम कदम

अरावली पर्वत श्रृंखला भारत की सबसे पुरानी और सबसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक प्रणालियों में से एक है। सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक कमेटी की अरावली पहाड़ियों की परिभाषा संबंधी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था। इसके बाद अरावली पहाड़ियों की रक्षा के लिए सड़क से सोशल मीडिया तक विरोध हो रहा है। अब केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने प्रेस फॉन्फ्रेंस में अरावली हिल्स को लेकर फैली अफवाहों और गलत सूचनाओं का खंडन किया है।

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने सरकार का पक्ष साफ शब्दों में रखा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीते वर्षों में ग्रीन अरावली मूवमेंट और अरावली के संरक्षण से जुड़े कई अहम कदम उठाए गए हैं।

2014 से अब तक रामसर साइटों में हुई बढ़ोतरी

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने बताया कि वर्ष 2014 में देश में केवल 24 रामसर साइट थीं, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 96 हो गई है। इनमें अरावली क्षेत्र से जुड़ी सुल्तानपुर, भिंडावास, असोला, सिलिसेढ़ और सांभर जैसी महत्वपूर्ण आर्द्रभूमियों को मौजूदा सरकार के कार्यकाल में रामसर साइट का दर्जा दिया गया है।

अरावली संरक्षण पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट मंशा

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अरावली रेंज के संरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार दोनों की मंशा बिल्कुल साफ है। खासतौर पर दिल्ली, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान में अरावली के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसके तहत ग्रीन इंडिया मिशन, बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और पर्यावरणीय बहाली जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

भूपेंद्र यादव ने बताया कि पिछले दो वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं दिल्ली में पेड़ लगाने की मुहिम से जुड़े हैं। वहीं गुरुग्राम में 10,000 एकड़ भूमि को मुआवजे के लिए रिजर्व किया गया है। इसके अलावा 750 एकड़ से अधिक खराब हो चुके वन क्षेत्र को ग्रीन क्रेडिट के जरिए दोबारा हरा-भरा किया जा रहा है।

केंद्रीय मंत्री ने कुछ नेताओं द्वारा किए जा रहे दावों को भ्रामक करार देते हुए स्पष्ट किया कि एनसीआर क्षेत्र में माइनिंग की किसी भी तरह की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि नई खनन गतिविधियों को लेकर फैलाए जा रहे दावे पूरी तरह झूठे और गुमराह करने वाले हैं।

अरावली के संरक्षण से कोई समझौता नहीं

भूपेंद्र यादव ने दो टूक कहा कि केंद्र सरकार अरावली के संरक्षण को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है और पर्यावरण की कीमत पर किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा। साथ ही उन्होंने सभी से अपील की कि भ्रामक सूचनाएं फैलाने से बचें और तथ्यात्मक जानकारी के आधार पर ही सार्वजनिक बयान दें।

अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर क्यों मचा हंगामा?

20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादास्पद मामले में केंद्र सरकार की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा तय की गई अरावली की परिभाषा को स्वीकार कर लिया। इस परिभाषा के अनुसार, स्थानीय भूभाग से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भू-आकृतियों को ही ‘अरावली’ माना जाएगा। यानी अब केवल वही पहाड़ या ऊंचे भूभाग ‘अरावली पहाड़ियां’ कहलाएंगे, जो अपने आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंचे हों। इसके अलावा, दो या उससे अधिक पहाड़ियों को तभी ‘अरावली पर्वत श्रृंखला’ का हिस्सा माना जाएगा, जब वे एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में स्थित हों। अरावली पहाड़ियों की परिभाषा बदलने वाले आदेश के बाद इस फैसले का विरोध हो रहा है।