Thu, Dec 25, 2025

‘जयस’ का शक्ति प्रदर्शन: संविधान और जल-जंगल-जमीन बचाने सड़कों पर उतरे युवा, अडानी-अंबानी का फूंका पुतला

Reported by:Kamlesh Sarda|Edited by:Atul Saxena
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जयस नेताओं ने आरोप लगाया कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में पेसा एक्ट 1996, वन अधिकार अधिनियम 2006 और वन संरक्षण अधिनियम 1980 को दरकिनार कर, बिना ग्राम सभा की अनुमति के खनन और निर्माण कार्यों को स्वीकृति दी जा रही है।
‘जयस’ का शक्ति प्रदर्शन: संविधान और जल-जंगल-जमीन बचाने सड़कों पर उतरे युवा, अडानी-अंबानी का फूंका पुतला

देश के आदिवासी बाहुल्य और पांचवीं अनुसूची वाले क्षेत्रों में हो रही अंधाधुंध जंगल कटाई, अवैध खनन और कॉर्पोरेट हस्तक्षेप के विरोध में गुरुवार को जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) ने नीमच में विशाल रैली निकालकर उग्र प्रदर्शन किया। संगठन ने आरोप लगाया कि विकास के नाम पर आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों और पर्यावरण का हनन किया जा रहा है। प्रदर्शन के दौरान आक्रोशित युवाओं ने अडानी और अंबानी का पुतला दहन कर अपना विरोध दर्ज कराया।

शबरी आश्रम से उठी विरोध की लहर

गुरुवार को जयस के आह्वान पर शबरी आश्रम से एक विशाल रैली का आगाज हुआ। हाथों में तख्तियां और जुबां पर “जल-जंगल-जमीन” बचाने के नारों के साथ यह रैली शहर के प्रमुख मार्गों से गुजरी। रैली मनासा नाका डाकबंगला, मेशी शोरूम, फव्वारा चौक, बारादरी, नया बाजार, घंटाघर, तिलक मार्ग और पुस्तक बाजार होते हुए 40 नंबर चौराहे पर पहुंची। चौराहे पर पहुंचते ही प्रदर्शनकारियों का आक्रोश फूट पड़ा और उन्होंने अडानी-अंबानी का पुतला दहन किया। इसके बाद रैली कलेक्ट्रेट पहुंची, जहाँ प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति के नाम संबोधित एक ज्ञापन कलेक्टर के प्रतिनिधि को सौंपा।

मध्य भारत के फेफड़े और अरावली पर संकट

जयस पदाधिकारियों ने मीडिया और प्रशासन के समक्ष गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि वर्ष 2025 में अरावली पर्वतमाला, सिंगरौली कोल बेल्ट, छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य और बस्तर संभाग सहित तेलंगाना के कंचा गाचीबोवली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और भूमि डायवर्जन किया जा रहा है। वक्ताओं ने कहा, “हसदेव अरण्य मध्य भारत का फेफड़ा है, वहां वन भूमि डायवर्जन से हाथी गलियारों और लेमरू हाथी रिजर्व पर खतरा मंडरा रहा है। वहीं, अरावली पर्वतमाला जो दिल्ली-एनसीआर और पश्चिमी भारत के लिए प्रदूषण नियंत्रण की ढाल है, उसे भी खोखला किया जा रहा है।”

संवैधानिक अधिकारों का हनन

प्रदर्शनकारियों ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि अनुच्छेद 21 (स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार), अनुच्छेद 48-क (वन संरक्षण) और अनुच्छेद 51-क (ह) (प्राकृतिक संपदा की रक्षा) का खुला उल्लंघन हो रहा है। जयस नेताओं ने आरोप लगाया कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में पेसा एक्ट 1996, वन अधिकार अधिनियम 2006 और वन संरक्षण अधिनियम 1980 को दरकिनार कर, बिना ग्राम सभा की अनुमति के खनन और निर्माण कार्यों को स्वीकृति दी जा रही है।

जयस ने राष्ट्रपति से की ये मांग

जयस ने ज्ञापन के माध्यम से राष्ट्रपति से मांग की है अरावली पर्वतमाला पर सभी प्रकार के उत्खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। हसदेव, बस्तर और सिंगरौली इन संवेदनशील क्षेत्रों में ग्राम सभा की वैधानिक प्रक्रिया और सहमति के बिना दी गई सभी स्वीकृतियों पर तत्काल रोक लगाई जाए या उनका कठोर संवैधानिक पुनरीक्षण हो। कंचा गाचीबोवली में सुप्रीम कोर्ट के स्वतः संज्ञान वाले मामलों में प्रशासनिक लापरवाही तय की जाए। संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि संवैधानिक प्रावधानों के तहत पर्यावरण और आदिवासियों के अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित नहीं किया गया, तो आने वाले समय में आंदोलन को और उग्र किया जाएगा।

कमलेश सारड़ा की रिपोर्ट