इसे 31 साल पहले की एक दर्दनाक घटना के तौर पर याद किया जाता है, 2 सितंबर 1994 को मसूरी में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा गोलीबारी की गई थी। इस गोलीकांड में छह आंदोलनकारी शहीद हो गए थे, जिन्होंने उत्तराखंड राज्य आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए अपनी जान की आहुति दी थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस दुखद दिन की 31वीं बरसी पर मसूरी स्थित शहीद स्मारक में श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि ये वीरों का बलिदान इतिहास नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा में दर्ज एक शौर्य गाथा है।
शहीद आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों के लिए 10% क्षैतिज आरक्षण अब लागू कर दिया गया है। उनकी विधवाओं को ₹30,000 मासिक पेंशन दी जा रही है। घायल आंदोलनकारियों और जेल गए कार्मिकों को ₹6,000, और एक्टिव आंदोलनकारियों को ₹4,500 प्रति माह की पेंशन दी जा रही है। शहीद आंदोलनकारियों के बच्चों को स्कूल कॉलेजों में निःशुल्क शिक्षा और सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा सुविधा मुहैया कराई गई है।
अन्य सरकारी पहलें
धामी ने आगे बताया कि उत्तराखंड आंदोलनकारियों की पहचान के लिए आधिकारिक पहचान पत्र जारी किए गए हैं और 93 आंदोलनकारियों को राजकीय सेवाओं में नियुक्ति भी मिल चुकी है। साथ ही राज्य में महिलाओं को रोजगार में 30% क्षैतिज आरक्षण भी दिया गया है। प्रदेश सरकार ने समान नागरिक संहिता, धर्मांतरण विरोधी कानून, मदरसा बोर्ड का समाप्तिकरण, ऑपरेशन कालनेमि, और प्राकृतिक रक्षा एवं सांस्कृतिक संरक्षण की पहलें भी तेज़ की हैं।
स्थानीय और सांस्कृतिक
मुख्यमंत्री ने मसूरी में कई मांगों पर कार्रवाई का आश्वासन भी दिया—जैसे गढ़वाल सभा भवन का निर्माण, सिफन कोर्ट का मामला, और वेंडर जोन का विकास। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य आंदोलन के प्रमुख चेहरों में शामिल इंद्रमणि बडोनी की जन्मशताब्दी समारोह भी भव्य तरीके से मनाया जाएगा। उत्तराखंड के आंदोलनकारियों के बलिदान को श्रद्धांजलि स्वरूप मुख्यमंत्री धामी ने ना केवल भावनात्मक सम्मान किया, बल्कि उनके परिवारों व आंदोलन से जुड़े व्यक्तियों के लिए कई ठोस और भविष्यदृष्ट दृष्टिगत सरकारी सुविधाएं भी पेश कीं। यह कदम उनकी कुर्बानियों का प्रत्यक्ष सम्मान है और राज्य आंदोलन की भावना को धारण करते हुए कार्रवाई का एक मजबूत संकेत है।





