मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में इन दिनों ‘आईएएस मीट’ का आयोजन हो रहा है। यह आयोजन हर साल होता है, लेकिन इस बार का माहौल थोड़ा अलग है। प्रदेश की नौकरशाही, जिसे कभी ‘स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया’ कहा जाता था, इन दिनों अपने ही अधिकारियों के विवादित बयानों के कारण चर्चा में है। मंत्रालय सेवा अधिकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष इंजी. सुधीर नायक ने इस मीट के दौरान कुछ गंभीर प्रश्न उठाए हैं, जो प्रशासनिक हलकों में चर्चा का विषय बन गए हैं।
सुधीर नायक ने एक लेख के माध्यम से चिंता जताई है कि हाल के कुछ महीनों में मध्यप्रदेश में आईएएस अधिकारियों द्वारा आचरण नियमों के उल्लंघन की कई घटनाएं सामने आई हैं। उनका कहना है कि इन घटनाओं से आम आदमी में अविश्वास और असुरक्षा की भावना पनप रही है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि आईएएस एसोसिएशन अपनी बैठक में इन उभरते हुए प्रश्नों पर विचार करेगा।
हालिया विवादित घटनाएं जिन्होंने खड़े किए सवाल
सुधीर नायक ने अपने पत्र में विशेष रूप से चार घटनाओं का जिक्र किया है, जो हाल ही में सुर्खियों में रही हैं:
1. प्रमोशन नियमों की आलोचना: पदोन्नति नियम 2025 अधिसूचित होने के बाद, मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई एक उच्चस्तरीय बैठक में तत्कालीन अपर मुख्य सचिव (गृह) ने इन नियमों की खुलेआम आलोचना की। बैठक में मौजूद दो अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी उनका समर्थन किया। नायक के अनुसार, यह कैबिनेट के फैसले पर सवाल उठाने जैसा था, जिसे अनुशासनहीनता माना जाता है।
2. जातिगत टिप्पणी: एक आईएएस अधिकारी ने कर्मचारी संगठन के अधिवेशन में आरक्षण और क्रीमी लेयर को लेकर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि जब तक सामाजिक संबंध (जैसे रोटी-बेटी का रिश्ता) स्थापित नहीं होते, तब तक क्रीमी लेयर लागू नहीं होनी चाहिए।
3. न्यायपालिका पर आक्षेप: इन्हीं अधिकारी द्वारा यह भी कहा गया कि हाई कोर्ट जानबूझकर आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को कम नंबर देता है ताकि वे सिविल जज न बन सकें। यह संवैधानिक संस्था पर सीधा हमला था।
4. जातिवादी मानसिकता की वकालत: एक अन्य महिला आईएएस अधिकारी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि आज के दौर में जातिवादी होना और जातिवादी मानसिकता रखना जरूरी है।
आईएएस का इतिहास और गिरते मूल्य
इंजी. सुधीर नायक ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के गौरवशाली इतिहास को याद करते हुए लिखा कि 1858 में स्थापित यह सेवा ब्रिटिश सत्ता की रीढ़ थी। आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसे भारत की एकता और अखंडता के लिए अनिवार्य बताया था। 1968 के अखिल भारतीय सेवा आचरण नियमों के तहत अधिकारियों से पूर्ण राजनीतिक तटस्थता और निष्पक्षता की अपेक्षा की जाती है।
नियम स्पष्ट कहते हैं कि एक बार कैबिनेट का निर्णय हो जाने के बाद, कोई भी अधिकारी उस पर प्रश्नचिह्न नहीं लगा सकता। जुलाई में इन नियमों को और कड़ा करते हुए सेवानिवृत्ति के बाद भी पेंशन रोकने तक के प्रावधान जोड़े गए हैं। ऐसे में सुधीर नायक का सवाल है कि जब सर्वोच्च सेवा ही पक्षपातपूर्ण दिखने लगे, तो देश और प्रदेश के हित का क्या होगा?
“एक सजग नागरिक होने के नाते मैं चिंतित हूं। उम्मीद है कि आईएएस मीट के दौरान एसोसिएशन इन मुद्दों पर आत्मचिंतन करेगा।” — इंजी. सुधीर नायक





