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Fri, Dec 19, 2025

E-tender Scam: लगभग 80 हजार करोड़ का ई-टेन्डरिंग घोटाला

Written by:Mp Breaking News
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E-tender Scam: लगभग 80 हजार करोड़ का ई-टेन्डरिंग घोटाला

भोपाल। पिछली सरकार में हुए ई-टेंडरिंग घोटाले में EOW द्वारा एफआईआर करने के बाद एक बार फिर ई-टेन्डरिंग घोटाला सुर्ख़ियों में है| टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए ई-टेंडर व्यवस्था लागू कर मध्यप्रदेश ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल बनवाया गया था। इसके माध्यम से विभिन्न विभागों के कार्यों के लिए ई-टेंडर व्यवस्था शुरू हुई। टेंडर की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन थी, लेकिन चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए इसमें छेड़छाड़ की गई और बोली लगाने वाली कंपनियों को पहले ही सबसे कम बोली का पता चल जाता था। शुरुआती तौर पर ई-टेंडर प्रक्रिया में लगभग तीन हजार करोड़ के घोटाले की बात सामने आई, लेकिन गड़बड़ी का यह सिलसिला 2006 से शुरू हुआ था और इस दौरान सरकार द्वारा इस प्रक्रिया के जरिए कई टेंडर दिए जा चुके हैं। सूत्रों की मानें तो यह घोटाला करीब 80 हजार करोड़ से ज्यादा का हो सकता है| 

बुधवार को राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने सात कंपनियों के अलावा मध्य प्रदेश सरकार के पांच अलग-अलग विभागों के अफसरों और अज्ञात नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया है।  जिन पर एफआईआर हुई है, उनमें जल निगम, पीडब्ल्यूडी, मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम, जल संसाधन विभाग के अफसरों के साथ ही 7 कंपनियों के निदेशक भी शामिल बताए जा रहे हैं। आईपीसी की धारा 420, 468, 471, 120 बी, आईटी एक्ट की धारा-66 के अलावा कई अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।

बता दें कि घोटाला सामने आने की बाद विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने इस मुद्दे पर शिवराज सरकार की जमकर घेराबंदी की थी, सड़क से लेकर सदन तक यह मुद्दा गरमाया था और सत्ता परिवर्तन की बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि नई सरकार इस घोटाले पर कार्रवाई कर सकती है| शिवराज के मुख्यमंत्री रहते हुए ई-टेंडर के नाम पर फर्जीवाड़ा करके कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया था। इसमें तत्कालीन शिवराज सरकार के कई अफसरों के शामिल होने की बात आई थी। जिसके बाद से इस मामले की जांच के लिए कांग्रेस ने भी प्रधानमंत्री को शिकायत की थी। इस पूरे खेल में ई पोर्टल में टेंपरिंग से दरें संशोधित करके टेंडर प्रक्रिया से बाहर आने वाली कंपनी को टेंडर दिला दिया जाता था और मनचाही कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिलाने का काम बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से अंजाम दिया जाता था। इस खुलासे के बाद में मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ,जल निगम, महिला बाल विकास, लोक निर्माण, नगरीय विकास एवं आवास विभाग, नर्मदा घाटी विकास, जल संसाधन जैसे विभागों में भी इस तरह के मामले होने की खबरें मिली। मुख्यमंत्री ने इस मामले पर कार्रवाई करने के आदेश दिए तब मुख्य सचिव ने ईओडब्ल्यू पत्र लिखकर इस मामले में एफआईआर दर्ज करने को कहा था। इस मामले की जांच कर रही इंडियन कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम( CERTIn) ने अपनी रिपोर्ट में ई-टेंडरिंग में बड़े घोटाले की जानकारी दी थी। इसके बाद ईओडब्ल्यू मुख्यमंत्री कमलनाथ की हरी झंडी का इंतजार कर रहा था और वहां से मंजूरी मिलते ही आर्थिक अपराधर अन्वेषण ब्यूरो ने एफआईआर दर्ज कर ली। पिछले महीने ही जांच एजेंसी ने ईओडब्ल्यू को जो रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें ये बताया था कि ई-टेंडर में बदलाव किए गए थे और कई लोगों ने अनाधिकृत रुप से सॉफ्टवेयर के साथ छेड़छाड़ की थी। इसके लिए एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में उन कम्प्यूटर सिस्टम के आईपी नंबर भी बताए हैं, जिसके जरिए जल निगम के तीन टेंडरों को हैक किया गया था और फिर छेड़छाड़ करके मनपसंद कंपनी को फायदा पहुंचाया गया। इसके बाद जांच एजेंसी ने ईओडब्ल्यू से 6 दूसरे टेंडरों के लॉग मांगे थे। ताकि जांच की जा सके। मध्य प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के सॉफ्टवेयर में सेंधमारी की वजह से तीन हजार करोड़ का ये घोटाला हुआ था। इसके सामने आने के बाद सरकार को साल 2018 में जारी किए गए 9 टेंडर कैंसिल करने पड़े थे।