सुरों के बादशाह मोहम्मद रफी का नाम सुनते ही बॉलीवुड संगीत प्रेमियों के दिल में एक अलग ही राग गूंजने लगता है। 1950 के दशक से लेकर 1980 के दशक तक रफी साहब ने अपने करियर में हजारों गाने गाए, जिनमें रोमांटिक, पारिवारिक, इमोशनल और भक्ति गीत शामिल हैं। उनकी आवाज में एक अलग सा ही जादू था, जो हर दिल को छू जाता था। धर्मेंद्र, राजकपूर, देव आनंद और कई सुपरस्टार्स पर फिल्माए गए उनके गाने आज भी सुनने में उतने ही मजेदार लगते हैं। चाहे गाना किसी भी मूड का हो, रफी साहब उसे पूरी इमोशन और सिद्दत के साथ गाते थे।
ऐसा ही एक किस्सा उनके करियर से जुड़ा है, जो उनके जज्बे को दिखाता है। साल 1961 में धर्मेंद्र की शुरुआती फिल्मों में से एक ‘शोला और शबनम’ की रिकॉर्डिंग चल रही थी। इस फिल्म के गीत ‘जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें…’ को रफी साहब गाने वाले थे, लेकिन उस वक्त उनकी तबीयत बहुत खराब थी।
बुखार में गाया गाना
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उनका बुखार 102 डिग्री तक पहुंच गया था। संगीतकार खय्याम ने उन्हें आराम करने की सलाह दी, लेकिन रफी साहब ने साफ कह दिया कि रिकॉर्डिंग रद्द नहीं हो सकती। उनका मानना था कि इससे प्रोड्यूसर और टीम को नुकसान होगा। भले ही उनकी हालत गंभीर थी, लेकिन रफी साहब ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने पूरे समर्पण और जूनून के साथ इस गाने को रिकॉर्ड किया। बता दें कि यह गीत उनके करियर के लिए भी यादगार पल बना।
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रफी साहब का जज्बा
मोहम्मद रफी का यह समर्पण उनके प्रोफेशनलिज्म की मिसाल बन गया। उनका ये सोचना कि अपनी वजह से किसी और को नुकसान नहीं होना चाहिए, उन्हें सबसे अलग बनाता है। उन्होंने सेहत की परवाह किए बिना यह गीत रिकॉर्ड किया। धर्मेंद्र पर फिल्माया गया यह गीत आज भी हर किसी के दिल में बसा हुआ है। ‘जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें…’ गाने की धुन और सिंगर की आवाज ने इसे सदाबहार बनाया। रेडियो, यूट्यूब और म्यूजिक स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर यह गीत आज भी लोगों की पहली पसंद बना हुआ है।
गीत के बोल
“जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें,
राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है…”





