महाप्रभु जगन्नाथ जी का नाम आते ही ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर का दृश्य सबकी आँखों के सामने आ जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं मध्य प्रदेश में भी भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं, ग्वालियर जिले के कुलैथ गांव में भगवान जगन्नाथ जी का सदियों पुराना मंदिर है, यहाँ हर साल पुरी की रथ यात्रा की तरह ही रथ यात्रा निकाली जाती है। इस मंदिर की विशेषता ये है कि जब भगवान को भोग अर्पित किया जाता है तो जिस मटके में चावल पकते हैं उसे महाप्रभु के सामने रखते ही वो चार बराबर भागों में बंट जाता है लोग इसे प्रभु का चमत्कार मानते हैं , आइये जानते है कुलैथ में विराजे भगवान जगन्नाथ से जुड़ी पूरी कहानी …
ग्वालियर जिले का कुलैथ गांव अन्य साधारण गांव की तरह ही है लेकिन धार्मिक आस्था में ये दूसरे गांवों से बहुत अलग है जहाँ एक ऐसा चमत्कार होता है, जो सैकड़ों साल बाद भी महाप्रभु जगन्नाथ के यहाँ होने का अहसास कराता है। मंदिर से जुड़े चमत्कार, कहानियां, किवदंतियां लोगों को प्रभावित करती हैं, यहाँ मेला भरता है रथ यात्रा निकाली जाती है जिसमें दूर दूर से लोग शामिल होने के लिए आते हैं। आज भी यहाँ मेला भरा है और रथ यात्रा निकाली जा रही है।
ग्वालियर जिले के कुलैथ गांव में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता मंदिर में चावल से भरे मिट्टी के मटके का चार बराबर में बंट जाना है, महाप्रभु के इस चमत्कार को देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु यहाँ आते हैं। विशेष बात ये हैं मंदिर के पुजारी किशोरी लाल श्रीवास्तव ये प्रक्रिया सबके सामने करते हैं, वे पके हुए चावलों से भरा मिट्टी का मटका जैसे ही भगवान के सामने रखते हैं वो बराबर चार भागों में बंट जाता है। सदियों से ये होता आया है लेकिन ऐसा क्यों होता है इसका जवाब लोग एक ही देते है..ये महाप्रभु का चमत्कार है।
अब यह चमत्कार है या महाप्रभु का आशीर्वाद, इसके पीछे एक अत्यंत प्रेरणादायक और भक्ति से भरे एक भक्त की आस्था यात्रा है, ये यात्रा है संत सांवलेदास जी महाराज की जो बचपन से ही आध्यात्मिक थे, उनकी भगवान में गहरी आस्था थी। मंदिर के पुजारी किशोरीलाल श्रीवास्तव बताते हैं कि उनके पूर्वज सांवलेदास जी का जन्म लगभग सन 1800 के आसपास हुआ था, उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है कि जब सांवले दास जी केवल 7 वर्ष के थे तब उनके माता-पिता का देहांत हो गया।
पुजारी किशोरीलाल श्रीवास्तव बताते हैं कि बालक सांवलेदास ने जब परिजनों से माता पिता के बारे में पूछा तो उनसे कह दिया गया कि गया कि उनके माता-पिता भगवान जगन्नाथ जी के पास चले गए हैं। इतना सुनकर वे जगन्नाथ पुरी की यात्रा पर निकल पड़े, बताते हैं कि 1816 में वे दंडवत करते हुए पुरी जगन्नाथ मंदिर पहुंचे और महाप्रभु के दर्शन किये।
साधु ने बताया सच, सात बार दंडवत यात्रा
दंडवत यात्रा के दौरान बालक सांवलेदास को रामदास महाराज नामक एक साधु मिले, जिन्होंने उन्हें सच्चाई बताते हुए कहा कि उनके माता-पिता अब इस संसार में नहीं हैं, लेकिन यदि वे सात बार दंडवत यात्रा करेंगे, तो उन्हें दिव्य चमत्कार देखने को मिलेगा। रामदास महाराज की बात सुनकर सांवलेदास ने बिना रुके सात बार पुरी की दंडवत यात्रा की।
चावल के मटके का सपना और चमत्कार
किशोरी लाल जी बताते हैं 1844 की एक यात्रा के दौरान सांवलेदास जी को प्रभु ने स्वप्न में कहा कि उन्हें कुलैथ में मंदिर बनाना चाहिए। लेकिन उन्होंने इसपर ध्यान नहीं दिया क्योंकि वे मूर्ति पूजा में बंधना नहीं चाहते थे। दो साल बाद 1846 में उन्हें पुनः स्वप्न आया, उनसे कहा गया कि वे यदि पके हुए चावल मिट्टी के एक मटके में भरकर किसी पवित्र स्थान पर रखें, तो वे स्वतः चार भागों में विभक्त हो जाएंगे। स्वप्न में उनसे कहा गया कि गांव के पास बहने वाली सांक नदी में चन्दन की लकड़ी की मूर्तियाँ पड़ी है उन्हें ले आओ।
प्रभु में स्वप्न दिया और कुलैथ में विराजमान हो गए
इस बार आये स्वप्न के बाद सांवलेदास सांक नदी पर गए उन्हें वहां चंदन की लकड़ी से बनी दिव्य मूर्तियां मिलीं । वे मूर्तियाँ घर ले आये और उन्हें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतीक रूप में स्थापित किया। उन्होंने जैसे ही मिट्टी के मटके में पके हुए चावल मूर्तियों के सामने रखे वे बराबर चार भागों में बंट गए, जैसे ही ये चमत्कार हुआ उन्होंने इसे ईश्वरीय आशीर्वाद माना और यहीं भगवान महाप्रभु की विधिवत स्थापना कर दी।
इसलिए चार भागों में बंट जाता है मिट्टी का मटका
मिट्टी के मटके का चार बराबर भागों में बंट जाना सामाजिक समरसता की तरफ इशारा करता है, परंपरा हैं कि इन चार भागों में एक भाग पुजारी का, एक भाग सेवा करने वालों का, एक भाग ग्राम देवता का और एक भाग मंदिर समिति के सदस्यों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है इस तरह महाप्रभु जगन्नाथ का ये चमत्कार आस्था का तो केंद्र है ही साथ ही ये सामाजिक समरसता का भी एक बड़ा उदाहरण है।
पुरी में रुकती है यात्रा, महाप्रभु कुलैथ आते हैं
पुजारी किशोरीलाल श्रीवास्तव के अनुसार हर साल जगन्नाथ पुरी में होने वाली रथ यात्रा बीच में साढ़े तीन घंटे के लिए रुकती है, यात्रा को रोके जाने के समय वहां घोषणा की जाती है कि जगन्नाथजी, पुरी से ग्वालियर के कुलैथ चले गए हैं। और कुछ समय बाद लौटेंगे, इसी समय चमत्कार होता है, कुलैथ की तीनों मूर्तियों की आकृति बदल जाती हैं। उनका वजन भी बढ़ जाता है। उन्हें भी इसका आभास होता है। इसके बाद कुलैथ मंदिर की मूर्ति को रथ में बैठकर पुरी की तरह ही रथ खींचने की शुरूआत जाती है।
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— MP Breaking News (@mpbreakingnews) June 27, 2025
ग्वालियर से अतुल सक्सेना की रिपोर्ट





