हरियाणा के पलवल जिले में ब्लॉक डेवलपमेंट एंड पंचायत ऑफिस (BDPO) से जुड़े ₹50 करोड़ से अधिक के एक बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है। आरोप है कि फर्जी कंपनियों और खातों के जरिए पंचायत फंड का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपये की हेराफेरी की गई। अब तक 13 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, जिनमें से चार आरोपियों को विजिलेंस ब्यूरो ने हाल ही में गिरफ्तार किया है।
फर्जी कंपनियों के नाम पर पैसा ट्रांसफर
विजिलेंस की जांच में खुलासा हुआ कि आरोपियों ने नकली कंपनियों और नामों का इस्तेमाल कर BDPO ऑफिस से फंड अपने निजी खातों में ट्रांसफर कराया। ‘दीपक मैनपावर’ नामक एक फर्जी कंपनी को ₹10,000 का भुगतान किया गया, जो पहले से गिरफ्तार क्लर्क राकेश से जुड़ी बताई जा रही है। आरोपी सुनील (बुलंदशहर) के खाते में ₹33.19 लाख, चतर सिंह (पलवल) के खाते में ₹10.42 करोड़, श्याम सिंह (महौली गांव) को ₹48.06 लाख, गोल्डी को ₹15 लाख ये सभी रकम सरकारी फंड से जारी की गई थीं और बाद में इन खातों से नकद रूप में निकाल ली गईं।
अब तक 13 गिरफ्तारी, कुर्की की तैयारी
इस घोटाले में पहले 9 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जो वर्तमान में जेल में हैं। इन सभी पर चार्जशीट दायर हो चुकी है। अब चार और नए आरोपियों की गिरफ्तारी से मामले की जड़ें और गहरी मानी जा रही हैं। विजिलेंस ब्यूरो अब इन सभी आरोपियों की संपत्तियों की कुर्की की प्रक्रिया शुरू कर चुका है। अधिकारियों का कहना है कि जितनी रकम की हेराफेरी हुई है, उसकी बरामदगी और वसूली की हरसंभव कोशिश की जाएगी।
जांच में कई बड़े खुलासे संभव
ब्यूरो के अनुसार, बैंकिंग रिकॉर्ड, खातों की ट्रांजेक्शन हिस्ट्री और सरकारी भुगतान रजिस्टर की जांच जारी है। प्रारंभिक जांच से यह भी संकेत मिले हैं कि इसमें और भी अधिकारी या कर्मचारी शामिल हो सकते हैं। साजिश के पीछे कौन-कौन शामिल है, और किस स्तर तक मिलीभगत हुई, यह जानने के लिए गहन पूछताछ जारी है। अधिकारियों का मानना है कि जल्द ही इस घोटाले के मास्टरमाइंड तक भी पहुंचा जा सकेगा।
भ्रष्टाचार पर सख्ती की नीति का हिस्सा
राज्य सरकार और विजिलेंस ब्यूरो इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का हिस्सा बता रहे हैं। मामले को लेकर राज्य सरकार ने स्पष्ट संकेत दिया है कि किसी भी आरोपी को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह सरकारी कर्मचारी हो या निजी व्यक्ति। विजिलेंस अफसरों के मुताबिक, यह केवल एक जिला या विभाग तक सीमित घोटाला नहीं हो सकता, ऐसे में अन्य जिलों में भी पंचायत फंड के उपयोग की समीक्षा की जा रही है।
पंचायत स्तर पर भी पारदर्शिता जरूरी
इस मामले ने एक बार फिर साबित किया है कि स्थानीय निकायों में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं। पंचायत स्तर पर फंड आवंटन और खर्च की निगरानी बेहद जरूरी है। अगर ऐसे घोटाले समय रहते नहीं पकड़े जाएं तो यह जनता की गाढ़ी कमाई के दुरुपयोग का सबसे बड़ा उदाहरण बन सकते हैं। अब देखना यह होगा कि जांच में और कौन से चेहरे बेनकाब होते हैं और सरकार इस तरह की हेराफेरी को रोकने के लिए क्या संस्थागत सुधार करती है।





