स्वामी घनानंद की जीवन यात्रा घाना से भारत, और फिर वैश्विक मंच तक पहुंचने की एक अनूठी मिसाल है। 2 जुलाई 2025 को प्रधानमंत्री मोदी की घाना यात्रा ने उनकी इस विरासत को अंतरराष्ट्रीय पहचान दी। एक आदिवासी परिवार में जन्मे घनानंद ने ऋषिकेश में दीक्षा लेकर घाना में 20 से अधिक मंदिर बनवाए और भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ें वहां रोपीं।
तीन दशक बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली घाना यात्रा न सिर्फ रणनीतिक रूप से अहम रही, बल्कि स्वामी घनानंद जैसे सांस्कृतिक प्रतीकों को सम्मान देने का अवसर भी बनी। 1940 में जन्मे स्वामी घनानंद ने भारत आकर सनातन धर्म की शिक्षा ली और फिर अक्रा में पहला हिंदू मंदिर बनवाया। उनके नेतृत्व में आज घाना में 20 से अधिक मंदिर हैं। पीएम मोदी का दौरा उनकी इस विरासत को नए युग में ले जाने की दिशा में एक कदम है, जो भारत-घाना के सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को गहरा करेगा।
आदिवासी से संत तक, स्वामी घनानंद की प्रेरक यात्रा
स्वामी घनानंद का असली नाम नाना ओपरे दजाग्या था, और उनका जन्म 1940 में घाना के अशांति क्षेत्र में हुआ था। 1962 में वे भारत आए और ऋषिकेश में स्वामी शिवानंद से सनातन धर्म की दीक्षा ली। उन्होंने न सिर्फ आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की, बल्कि भारतीय दर्शन को घाना में फैलाने का बीड़ा उठाया। 1970 में उन्होंने अक्रा में पहला श्री वेंकटेश्वर मंदिर स्थापित किया, जो आज भी एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। योग, वेदांत और आयुर्वेद को उन्होंने स्थानीय संस्कृति में आत्मसात कराया। उनकी यह यात्रा भारत और अफ्रीका के बीच आध्यात्मिक सेतु बन गई।
पीएम मोदी का दौरा और भारत-घाना रिश्तों की नई शुरुआत
2-3 जुलाई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घाना यात्रा ऐतिहासिक रही। वे राष्ट्रपति जॉन ड्रामानी महामा से मिले और संसद को भी संबोधित किया। इस यात्रा में स्वास्थ्य, शिक्षा, डिजिटल कनेक्टिविटी और टेक्नोलॉजी पर द्विपक्षीय समझौते हुए। पीएम मोदी ने अक्रा में भारतीय समुदाय से भी मुलाकात की और स्वामी घनानंद द्वारा स्थापित मंदिरों को सम्मान दिया। इससे भारत की सॉफ्ट पावर को वैश्विक पहचान मिली और यह यात्रा सांस्कृतिक डिप्लोमेसी की मिसाल बन गई।
घाना में हिंदू धर्म की गहराती जड़ें
स्वामी घनानंद ने घाना में न सिर्फ मंदिर बनवाए, बल्कि स्थानीय समुदाय को हिंदू संस्कृति से जोड़ा। अक्रा का श्री वेंकटेश्वर मंदिर, कुमासी और तामाले के अन्य मंदिर उनके प्रयासों का परिणाम हैं। उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद कराया और बच्चों को संस्कार केंद्रों में शिक्षा दी। आयुर्वेद, योग और वेदांत उनके मिशन का हिस्सा रहे, जिससे घाना में भारतीय जीवनशैली लोकप्रिय हुई। पीएम मोदी की यात्रा इन मंदिरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने वाली साबित हुई है।





