अमेरिका और नाटो के सुर अब तीखे हो गए हैं। NATO महासचिव मार्क रूट ने भारत, चीन और ब्राजील को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी है कि अगर ये देश रूस के साथ व्यापार विशेष रूप से तेल और गैस जारी रखते हैं, तो उन्हें 100% सेकेंडरी टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिकी दौरे पर पहुंचे रूट ने कहा कि इन देशों को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर शांति वार्ता के लिए दबाव डालना चाहिए। रूट ने कहा, “अगर आप भारत के प्रधानमंत्री, चीन के राष्ट्रपति या ब्राजील के राष्ट्रपति हैं, तो आपको यह समझना होगा कि रूस से व्यापार जारी रखने की कीमत बहुत महंगी हो सकती है।”
यह चेतावनी ऐसे समय पर आई है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन को और हथियार देने और रूस व उसके व्यापारिक साझेदारों पर भारी टैक्स लगाने का ऐलान किया है। अमेरिका ने संकेत दिए हैं कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश अगर रूस से तेल खरीद जारी रखते हैं तो उन पर भी सेकेंडरी प्रतिबंध लगाए जाएंगे।
भारत ने जताया विरोध, कहा-राष्ट्रीय हित में फैसले लेंगे
भारत सरकार ने इस धमकी को “अनुचित और अस्वीकार्य” बताया है। विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, “भारत एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र है, और हम अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाते हैं। वैश्विक दबाव हमारी विदेश नीति का निर्धारण नहीं कर सकता।” भारत ने साफ कर दिया है कि वह रूस से रियायती दर पर तेल खरीदता रहेगा क्योंकि यह देश की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए जरूरी है। भारत की यह प्रतिक्रिया केवल बयान नहीं, बल्कि उसके रणनीतिक संतुलन को दिखाती है। भारत लगातार पश्चिम और रूस के साथ संबंधों को बैलेंस करता रहा है। लेकिन अब NATO की धमकी के बाद वह स्थिति और नाजुक हो गई है। भारत के अनुसार, वह कूटनीति और बातचीत से यूक्रेन संघर्ष के समाधान का पक्षधर है, लेकिन इसके नाम पर व्यापार पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं है।
भारत पर संभावित प्रभाव
भारत रूस से कुल आयात का बड़ा हिस्सा तेल के रूप में करता है। प्रतिबंधों से इस सप्लाई चेन पर असर पड़ेगा, और भारत को महंगे विकल्पों (सऊदी, अमेरिका, इराक) पर जाना पड़ सकता है। ईंधन महंगाई का खतरा हो सकता है। महंगा तेल खरीदने से घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे आम जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। बैंकिंग व व्यापारिक जोखिम भी बढ़ सकता है। अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली से निकाले जाने का खतरा रहेगा, जिससे भारतीय कंपनियों का निर्यात और वैश्विक लेनदेन प्रभावित हो सकता है। विदेश नीति पर दबाव बन सकता है। अमेरिका-यूरोप और रूस के बीच संतुलन साधने की भारत की रणनीति पर असर पड़ेगा। इससे भारत की वैश्विक स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
रूस ने भी चेताया, नीतियां नहीं बदलेंगे
रूस ने अमेरिका और NATO की धमकियों को खारिज करते हुए कहा है कि वह इस तरह के “अल्टीमेटम” स्वीकार नहीं करेगा। रूसी उप विदेश मंत्री सर्गेई रियाबकोव ने कहा कि रूस आर्थिक दबावों के बावजूद अपनी विदेश नीति नहीं बदलेगा। उन्होंने कहा कि यदि अमेरिका और NATO दबाव बढ़ाते हैं, तो रूस वैकल्पिक व्यापार मार्ग और साझेदारों की तलाश करेगा। जिसमें भारत, चीन और खाड़ी देश शामिल हैं।रियाबकोव ने यह भी साफ किया कि रूस ट्रंप के साथ बातचीत को तैयार है, लेकिन किसी दबाव में नहीं झुकेगा।
भारत की अग्निपरीक्षा और निर्णायक कूटनीति का वक्त
NATO और अमेरिका के इस नई आक्रामकता के बीच भारत की अगली रणनीति बेहद महत्वपूर्ण होगी। क्या भारत रूस से तेल खरीद जारी रखेगा या कोई नया फॉर्मूला निकालेगा। इस पर न केवल भारत की आर्थिक सुरक्षा बल्कि उसकी वैश्विक राजनीतिक पहचान भी निर्भर करेगी। अभी भारत के पास कुछ विकल्प है जिसमें रूस से आयात सीमित करना और बातचीत तेज करना, वैकल्पिक व्यापार साधनों (जैसे रुपये-रूबल) को मजबूत करना, NATO से अपील करना कि उसे विकासशील देशों की ऊर्जा जरूरतों को समझना चाहिए। जो भी हो, भारत अब महज दर्शक नहीं, बल्कि इस भू-राजनीतिक टकराव का एक निर्णायक खिलाड़ी बन चुका है। और उसकी हर चाल, अब पूरी दुनिया देख रही है।





