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Fri, Dec 19, 2025

संस्कारी और गुणवान संतान की इक्छा रखने वाले माता-पिता को करने चाहिए ये काम, महाराज जी की सलाह

Written by:Bhawna Choubey
Published:
क्या आप भी चाहते हैं कि आपकी संतान गुणवान, संस्कारी और सफल हो? प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, संतान के संस्कार और गुण उसके गर्भ में आने से ही निर्धारित होने लगते हैं। महाराज जी ने गुणवान संतान पाने के लिए कुछ खास आध्यात्मिक उपाय बताए हैं।
संस्कारी और गुणवान संतान की इक्छा रखने वाले माता-पिता को करने चाहिए ये काम, महाराज जी की सलाह

प्रेमानंद जी महाराज को कौन नहीं जानता, दूर दूर से लोग प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन में शामिल होने के लिए आते हैं। जो लोग महाराज जी के प्रवचन में नहीं पहुँच पाते हैं वे सोशल मीडिया के ज़रिए उनकी हर एक प्रवचन को बड़े ही ध्यानपूर्वक सुनते हैं। आजकल सोशल मीडिया पर प्रेमानंद जी महाराज की छोटी बड़ी कई वीडियो वायरल होती हुई नज़र आती है, ना सिर्फ़ बड़े बल्कि बच्चों को भी प्रेमानंद जी महाराज की बातें सुनना काफ़ी अच्छा लगता है।

अपने मन की उलझनों को सुलझाने के लिए लोग प्रेमानंद जी महाराज से प्रश्न पूछते हैं, प्रेमानंद जी महाराज बड़े ही सरल भाव से हर एक व्यक्ति के प्रश्नों का उत्तर देते हैं, सूत्रों को सुनने के बाद अधिकांश लोगों की मन की उलझन सुलझ जाती है। ये मानद जी महाराज लोगों को आध्यात्मिक रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। इसी के चलते एक बार प्रवचन के दौरान एक व्यक्ति ने महाराज से पूछा कि महाराज जी संस्कारी और गुणी संतान पाने के लिए हमें किन नियमों का पालन करना चाहिए।

प्रेमानंद जी महाराज की सलाह (Premanand Ji Maharaj)

गर्भावस्था में पवित्र आहार और धार्मिक चिंतन

इसका जवाब देते हुए प्रेमानंद जी महाराज ने कहा, की संतान की इच्छा रखने वाली माता पिता को कुछ समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इसका मतलब है कि गर्भधारण से पहले और गर्भावस्था के दौरान भी शारीरिक संयम बनाए रखना चाहिए। यह संयम न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता के लिए भी ज़रूरी है।गर्भधारण से पहले और गर्भावस्था के दौरान माता पिता को भगवान का नाम जप करना चाहिए और उनका चिंतन करना चाहिए, ऐसा करने से मन शांत और पवित्र रहता है, जब हमारा मन पवित्र रहेगा तो हम संतान के संस्कारों को भी प्रभावित सही ढंग से कर पाएंगे।

गर्भावस्था के दौरान माता पिता को पवित्र और सात्विक आहार लेना चाहिए। इससे न सिर्फ़ शरीर बल्कि मन भी शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। जो गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए अच्छा होता है। गर्भवती माता को धार्मिक कथा सुननी चाहिए, और प्रेरणादायक ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए। इससे माता के मन में सकारात्मक विचार आते हैं, जो गर्भस्थ शिशु के मानसिक और आध्यात्मिक विकास में मदद करते हैं।

ब्रह्मचर्य और पवित्र आहार

महाराज जी ने कश्यप ऋषि का उदाहरण देते हुए बताया, ये उन्होंने कैसे लंबे समय तक ब्रह्मचर्य का पालन किया, उन्हें दो गुणवान पुत्रों की प्राप्ति हुई, जिनका नाम अरुण और गरुड रहा। अरुण सूर्य भगवान के सारथी बने और गरूड़ भगवान विष्णु के वाहन बने। हम ज़्यादा नहीं तो कुछ महीनों के लिए तो ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं। महाराज ने कहा कि जब बच्चा गर्भ में हो तब से लेकर जनवरी तक माता पिता को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। माता को पवित्र आहार लेना चाहिए, अच्छी शब्द बोलने चाहिए, भगवान का नाम जाप करना चाहिए, धार्मिक कथा सुननी चाहिए, इतना सब करने से निश्चित ही संस्कारी और गुणवान संतान की प्राप्ति होगी।