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Sat, Dec 20, 2025

84 लाख योनियों का चक्र कैसे रुकता है? प्रेमानंद महाराज ने बताया मोक्ष का सीधा रास्ता

Written by:Bhawna Choubey
Published:
हिंदू धर्म में माना जाता है कि आत्मा 84 लाख योनियों में भटकती है, लेकिन यह चक्र कब और कैसे रुकता है? प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचन में इसका जवाब दिया है। जानिए क्या है जन्म-मरण से मुक्ति पाने का सच्चा रास्ता और आध्यात्मिक जीवन का रहस्य।
84 लाख योनियों का चक्र कैसे रुकता है? प्रेमानंद महाराज ने बताया मोक्ष का सीधा रास्ता

हम सभी ने बचपन से सुना है कि आत्मा को 84 लाख योनियों में भटकना पड़ता है। ये जन्म-मरण का ऐसा चक्र है जो तब तक चलता रहता है जब तक आत्मा को मोक्ष न मिल जाए। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या सच में आत्मा इतनी बार जन्म लेती है? और इस चक्र से मुक्ति कैसे मिले?

प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज (Premanand Maharaj) ने अपने हालिया प्रवचन में इस सवाल का सरल और आध्यात्मिक उत्तर दिया है। उन्होंने कहा कि जब आत्मा ईश्वर के सच्चे प्रेम में रंग जाती है, तब यह 84 लाख योनियों का चक्र थम जाता है। उनके अनुसार, मोक्ष किसी पूजा-पाठ की रस्म भर नहीं, बल्कि मन और भाव की सच्ची लगन से जुड़ा होता है।

सिर्फ कर्म नहीं, भक्ति भी जरूरी है

प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि सिर्फ अच्छे कर्म करना ही काफी नहीं है, जब तक उन कर्मों के पीछे ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण नहीं हो। जीवन में चाहे हम कितने ही धार्मिक अनुष्ठान क्यों न करें, यदि हमारे अंदर प्रभु के प्रति प्रेम नहीं है, तो आत्मा इस संसार में बार-बार जन्म लेती रहेगी।

उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि जैसे कोई बच्चा मां से सच्चा प्यार करता है, तो मां भी उसे गोद में रखती है। वैसे ही जब जीव प्रभु से प्रेम करता है, तो प्रभु उसे अपने में समा लेते हैं और मोक्ष प्रदान करते हैं।

ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का संतुलन है मोक्ष 

84 लाख योनियों का चक्र तभी टूटता है जब ज्ञान, भक्ति और वैराग्य ये तीनों जीवन में संतुलित हों। प्रेमानंद महाराज ने कहा कि भक्ति बिना ज्ञान अधूरी है और ज्ञान बिना वैराग्य निरर्थक। जब व्यक्ति अपने जीवन के मूल उद्देश्य को समझता है और ईश्वर को पाने की ललक उसके मन में होती है, तब ही आत्मा मुक्त हो सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि यह कोई एक दिन में होने वाली प्रक्रिया नहीं है, बल्कि इसके लिए नियमित साधना, मन की शुद्धता और भक्ति में दृढ़ता चाहिए।

सत्संग और साधु सेवा से मिलता है रास्ता

प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचन में सत्संग की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति संतों के सान्निध्य में आता है, तो उसका मन बदलता है, दृष्टिकोण बदलता है और धीरे-धीरे वह आत्मा की यात्रा को समझने लगता है। सत्संग से ही जीव को यह बोध होता है कि संसार का सुख अस्थायी है और प्रभु का प्रेम ही अंतिम सत्य है।

उन्होंने भक्तों से आग्रह किया कि वे सत्संग, भजन और प्रभु नाम जप को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं, तभी 84 लाख योनियों का चक्र टूटेगा और आत्मा को अविनाशी आनंद प्राप्त होगा।