Thu, Dec 25, 2025

अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत: मोदी सरकार ने भारत रत्न से लेकर AMRUT और पेंशन योजना तक कैसे दिया सम्मान

Written by:Banshika Sharma
Published:
Modi Sarkar on Atal Bihari Vajpayee: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत को केवल स्मृति-चिह्नों तक सीमित न रखकर उसे योजनाओं और संस्थानों के जरिए संस्थागत रूप दिया है। अटल पेंशन योजना, AMRUT मिशन और भारत रत्न जैसे फैसलों के माध्यम से उनकी नीतिगत सोच को शासन प्रणाली का हिस्सा बनाया गया है।
अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत: मोदी सरकार ने भारत रत्न से लेकर AMRUT और पेंशन योजना तक कैसे दिया सम्मान

भारतीय राजनीति में पूर्व प्रधानमंत्री Atal Bihari Vajpayee उन चुनिंदा नेताओं में शुमार रहे, जिनकी स्वीकार्यता दलीय सीमाओं से परे थी। उनके निधन के बाद केंद्र में सत्ता में आई Narendra Modi सरकार ने उनकी विरासत को सहेजने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया। सरकार ने उन्हें केवल औपचारिक श्रद्धांजलियों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि प्रमुख सरकारी योजनाओं, संस्थानों और नीतिगत विमर्श के जरिए उनकी स्मृति को स्थायी रूप देने की दिशा में ठोस कदम उठाए।

मोदी सरकार का सबसे प्रमुख कदम वाजपेयी के नाम पर राष्ट्रीय महत्व की योजनाओं का नामकरण करना रहा। इसका उद्देश्य उनकी नीतिगत सोच को समकालीन शासन व्यवस्था से जोड़ना बताया गया। वर्ष 2015 में शुरू की गई ‘अटल पेंशन योजना’ इसका एक बड़ा उदाहरण है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को न्यूनतम पेंशन सुरक्षा देने वाली इस योजना को वाजपेयी के समावेशी विकास के विजन से जोड़ा गया।

शहरी विकास और नवाचार में अटल की छाप

शहरी बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए सरकार ने ‘अटल मिशन फॉर रीजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन’ (AMRUT) की शुरुआत की। शहरों में जलापूर्ति और सीवरेज सुधार पर केंद्रित इस मिशन को वाजपेयी काल की इंफ्रास्ट्रक्चर नीतियों के विस्तार के रूप में देखा गया। इसके अलावा, शिक्षा और तकनीक के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए ‘अटल इनोवेशन मिशन’ शुरू किया गया, जो स्टार्टअप संस्कृति और भविष्य की तैयारियों पर केंद्रित है।

भारत रत्न और संस्थागत सम्मान

योजनाओं के अलावा सरकार ने औपचारिक सम्मान के स्तर पर भी बड़े निर्णय लिए। वर्ष 2015 में वाजपेयी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया। यह सम्मान उनके जीवनकाल में ही प्रदान किया गया, जिसे राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर व्यापक समर्थन मिला। इसके अतिरिक्त, केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने कई विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों और स्टेडियमों का नामकरण भी उनके नाम पर किया ताकि नई पीढ़ी उनके योगदान से परिचित हो सके।

नीतिगत फैसलों में निरंतरता

मोदी सरकार ने अपने कई नीतिगत फैसलों को वाजपेयी युग की सोच का विस्तार बताया है। राष्ट्रीय राजमार्गों और कनेक्टिविटी परियोजनाओं को वाजपेयी की महत्वाकांक्षी ‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ योजना की अगली कड़ी के रूप में प्रचारित किया गया। वहीं, विदेश नीति में भी दृढ़ता और संवाद के संतुलन को उनकी कूटनीतिक परंपरा से जोड़ने का प्रयास किया गया है।

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि वाजपेयी की सहमति और संवाद-आधारित राजनीति अपने समय की विशिष्ट परिस्थितियों की उपज थी। आलोचकों का कहना है कि किसी नेता की विरासत अपनाने के साथ उनके मूल राजनीतिक मूल्यों को भी उसी गंभीरता से समझा जाना चाहिए। इन तर्कों के बावजूद, यह स्पष्ट है कि वाजपेयी उन नेताओं में शामिल हैं जिनके नाम पर सरकार ने योजनात्मक, संस्थागत और वैचारिक तीनों स्तरों पर एक अमिट छाप छोड़ने की कोशिश की है।