समय बदल रहा है, लेकिन लोकतंत्र की परछाईं आज भी सीधी भाषणों में झलकती है। हरियाणा विधानसभा ने 21 अगस्त 2025 को एक सर्कुलर जारी किया है, जो लाइव कवरेज को लेकर नए नियम तय करता है। अब केवल वही टीवी चैनल सीधी कार्यवाही दिखा सकेंगे, जिन्हें स्पीकर की अनुमति मिली हो। साथ ही सोशल मीडिया पर शेयरिंग की पूरी पाबंदी कर दी गई है। सरकार इसे पारदर्शिता बढ़ाने वाला कदम बता रही है, मगर आलोचकों की मंशा को “सोशल मीडिया को चुप कराने का तरीका” कहना भी कम नहीं है। आइए जानते हैं विस्तार से…
स्पीकर की अनुमति के बिना कोई लाइव कवरेज नहीं
झूमर जैसी सुबह की महफिल हो या हंगामेदार शाम की बहस, अब विधानसभा की लाइव स्ट्रीम केवल उन्हीं टीवी चैनलों को दिखानी होगी, जिन्हें स्पीकर ने खास अनुमति दी हो। बिना अनुमति प्रसारण करने वाले चैनलों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। सरकार का कहना है कि इससे गलत और गैरकानूनी प्रसारण पर रोक लगेगी।
वॉटरमार्क और विधानसभा का लोगो अनिवार्य
प्रत्येक चैनल को अपने प्रसारण पर अपने चिह्न (वॉटरमार्क) और हरियाणा विधानसभा का लोगो स्पस्ट रूप से दिखाना होगा। ऐसा इसलिए ताकि ऑडियंस को पता हो कि यह अधिकृत स्ट्रीम है, और गैरमान्यता प्राप्त स्रोतों से हुए प्रसारण से भ्रम से बचा जा सके।
सोशल मीडिया पर लाईव शेयरिंग पूरी तरह प्रतिबंधित
यह सर्कुलर सबसे विवादास्पद हिस्सा सोशल मीडिया पर लाइव प्रसारण रोकने का आदेश है—फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, ट्विटर पर सीधे प्रसारण अब वर्जित है। चैनलों को अपने सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के हैंडल हरियाणा विधानसभा को उपलब्ध कराने होंगे। साथ ही, वे सुनिश्चित करेंगे कि कोई अन्य प्लेटफॉर्म उनका लिंक शेयर न कर सके।
कटे हुए हिस्सों का सार्वजनिक मंचों पर उपयोग नहीं
यदि किसी हिस्से को विधानसभा प्रसारण से हटाया गया है—वह हिस्सा किसी नीजि चैनल, सोशल मीडिया, या किसी भी मंच पर नहीं चलाया जाना चाहिए। सर्कुलर कहता है कि चुने हुए शब्द या अंश का प्रसार किसी रुप में नहीं किया जा सकता, चाहे वह संपादित हो या नहीं।
आलोचना और राष्ट्रहित की दौड़
सरकार कह रही है कि इससे झूठी सूचनाओं का प्रसार रुकेगा और सीधे, प्रमाणिक जानकारी जनता तक पहुंचेगी। वहीं आलोचक कहते हैं कि सोशल मीडिया को चुप करने का यह तरीका लोकतंत्र के मूल्यों की अवहेलना है-स्वतंत्र मीडिया पर सेंसरशिप की परछाईं नजर आती है।
जो लोग सोशल मीडिया पर बातचीत का रंग पसंद करते हैं—अब वे लाइव चर्चा, प्रतिक्रिया और हिस्सा लेने से वंचित रह जाएंगे। भविष्य में देखने वाली बात होगी कि क्या लोकतंत्र इस प्रक्रिया से मजबूत बनता है या स्ट्रीमिंग की आज़ादी पीछे छूट जाती है।





